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________________ हिंदीवंगानुवादसहितं परीक्षामुखं । तदन्वयव्यतिरेकानुविधानाभावाच्च केशोंडुकज्ञानवअक्तंचरज्ञानवच्च ॥७॥ ___ हिंदी-मच्छर न होनेपर भी केशोंमें मच्छरोंका ज्ञान हो जाता है किंतु यहांपर ज्ञानका मच्छरोंके साथ अन्वय व्यतिरेक न रहनेसे ( अन्वयव्यतिरेकव्यभिचारसे ) जिसप्रकार मच्छर ज्ञानके प्रति कारण नहिं होते और कृष्ण पक्षकी रात्रिमें प्रकाश न होनेपर भी बिल्ली, उल्लू आदि जीवोंको पदार्थोंका ज्ञान हो जाता है। यहांपर ज्ञानका प्रकाशके साथ अन्वय व्यतिरेक न रहनेसे (अन्वयव्यतिरेकके व्याभिचारसे ) प्रकाश ज्ञानका कारण नहिं होता, उसीप्रकार पदार्थ और प्रकाश कदापि जानके कारण नहिं हो सकते ॥७॥ बंगला-येमन मशक केश ना हइलेओ केश मशकेर ज्ञान हइते पारे किंतु ए स्थले केश मशकेर संगे ज्ञानेर अन्वयव्यतिरेक ना हओयाते येरूप केश मशक ज्ञानेर कारण. एवं कृष्ण पक्षेर रात्रिते प्रकाश हइलेओ विडाल उलूक प्रभृतिर पदार्थज्ञान हय किंतु एखाने प्रकाशेर संगे ज्ञानेर अन्वयव्यतिरेक ना हओयाते पदार्थ ओ प्रकाश ज्ञानेर कारण कदापि हइते पारे ना ॥७॥ ___अतज्जन्यमपि तत्प्रकाशकं प्रदीपवत् ॥८॥ हिंदी-पदार्थोंसे नहिं उत्पन्न होकर भी प्रदीप जिसप्रकार घटपटादि पदार्थोंका प्रकाशक है, उसीप्रकार पदार्थोंसे उत्पन्न न होकर भी ज्ञान उन पदार्थों का प्रकाश करनेवाला है ॥८॥ बंगला--पदार्थ हइते उत्पन्न ना हइयाओ येरूप प्रदीप घटपट प्रभृति पदार्थेर प्रकाशक, सेरूप घटपटादि पदार्थ हइते उत्पन्न ना हइया ज्ञानओ से सकल पदार्थ समूहेर प्रकाशक ॥८॥
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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