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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक (७०) अर्थ-एक मुहूर्त पहले पूर्वभद्रपदा का उदय नहीं हुआ, क्यों, कि अभी उत्तरभद्रपदा का उदय नहीं है। __ विवेचन-यहाँ प्रनिषेध्य पूर्वभद्रपदा का उदय है, उससे अविरुद्ध उत्तरचर उत्तरभद्रपदा के उदय की अनुपलब्धि होने से यह अविरुद्ध उत्तरचगनुपलब्धि है। अविरुद्ध सहचरानुपलब्धि सहचरानुपलब्धिर्यथा, नास्त्यस्य सम्यग्ज्ञानं, सम्यग्दर्शनानुपलब्धेः ॥ १०२॥ अर्थ-इस पुरुष में सम्यग्ज्ञान नहीं है, क्योंकि सम्यग्दर्शन की अनुपलब्धि है। विवेचन यहाँ प्रतिषेध्य सम्यग्ज्ञान है, उससे अविरुद्ध सहचर सम्यग्दर्शन की अनुपलब्धि होने से यह अविरुद्ध सहचरानुपलब्धि का उदाहरण है। विधिसाधक विरुद्धानुपलब्धि विरुद्धानुपलब्धिस्तु विधिप्रतीतो पञ्चधा ॥ १०३ ॥ विरुद्ध कार्यकारणस्वभाव-व्यापकसहचरानुपलम्भभेदात् ॥ १०४ ॥ अर्थ-विधि को सिद्ध करने वाली विरुद्धानुपलब्धि के पांच भेद हैं। (१) विरुद्ध कार्यानुपलब्धि (२) विरुद्ध कारणानुपलब्धि
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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