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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (६८) विवेचन--यहाँ प्रतिषेध्य कुम्भ है. उमसे अविरुद्ध स्वभाव है। उपलब्ध होने की योग्यता और उस स्वभाव की अनुपलब्धि है। अत: यह अविरुद्ध स्वभावानुपलब्धि का उदाहरण है। अविरुद्ध ब्यापकानुपलब्धि विरुद्ध व्यापकानुपलब्धिर्यथा-नास्त्यत्र प्रदेशे पनसः पादपानुपलब्धेः ॥ ६७ ॥ अर्थ--इस जगह पनस नहीं है, क्योंकि वृक्ष नहीं है। विवेचन-यहाँ प्रतिषेध्य पनस से अविरुद्ध व्यापक पादप की अनुपलब्धि होने से यह अविरुद्ध व्यापकानुपलब्धि है। अविरुद्ध कार्यानुपलब्धि कार्यानुपलब्धिर्यथा-नास्त्यत्राप्रतिहतशक्तिकं बीजमंकुरानवलोकनात् ॥ १८ ॥ ___ अर्थ-अप्रतिहत शक्तिवाला बीज नहीं है, क्योंकि अंकुर नहीं दिखाई देता। विवेचन-जिसकी शक्ति मंत्र आदि से रोक न दी गई हो या पुराना होने से स्वभावतः नष्ट न हो गई हो वह अप्रतिहत शक्ति वाला कहलाता है । यहाँ प्रतिषेध्य अप्रतिहत शक्ति वाला बीज है, उससे अविरुद्ध कार्य अंकुर की अनुपलब्धि होने से यह अविरुद्ध कार्यानुपलब्धि है।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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