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________________ अन्धकार का परिचय श्री देवसूरि गुर्जरदेश के 'मदाहृत' नामक नगर में उत्पन्न हुये थे। पोरवाल नामक वैश्य जाति के भूषण थे। उनके पिता 'वीरनार्ग' और माता 'जिनदेवी' थी। श्री देवसूरि का पूर्व नामापूर्णचन्द्र था। वि० सं० ११४३ में - इनका जन्म हुआ था। वि० सं० ११५२ में उन्होंने बृहत्तपगच्छीय यशोभद्र नेमिचन्द्र सूरि के पट्टालकार श्री मुनिचन्द्र सूरिजी के पास दीक्षा अङ्गीकार की थी। पूर्णचन्द्र ने थोड़े ही समय में अनेक शास्त्रों का अध्ययन कर लिया। गुरुजी ने इनकी वादशक्ति से संतुष्ट होकर वि० सं० ११७४ में 'देवसूरि' ऐसा नाम संस्करण करके आचार्य पद प्रदान किया। वि० सं० ११७८ कार्तिककृष्णा में गुरुजी का स्वर्गवास हो जाने के बाद श्री देवसूरि ने गुजरात, मारवाड़, मेवाड़ आदि देशों में विचरण करके धर्म-प्रचार किया और नागौर के राजा आह्लादन, पाटन के प्रतापी राजा सिद्धराज जयसिंह तथा गुर्जरेश्वर कुमारपाल आदि को धर्मानुरागी बनाया था। ___ श्री देवसूरिजी की वादशक्ति बहुत ही विलक्षण थी। बहुत से विवादों में उन्होंने विजयलक्ष्मी प्राप्त की थी। कहा जाता है कि पाटन में सिद्धराज जयसिंह नामक राजा की अध्यक्षता में एक दिगम्बराचार्य श्री कुमुदचन्द्र के साथ 'स्त्री मुक्ति, केवलिभुक्ति और सवस्त्रमुक्ति' के विषय में सोलह दिन तक वादविवाद हुआ था और उममें भी विजय प्राप्त करके वादिदेवसूग्जिी ने अपनी प्रखर तार्किक बुद्धि का परिचय दिया था। श्री वादिदेवसूरि जैसे तार्किक थे वैसे ही प्रौढ़ लेखक भी। उन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ को विशद करने के लिये 'स्याद्वादरत्नाकर' नामक बृहत् स्वोपज्ञ भाष्य लिख कर अपनी तार्किकता का सुन्दर परिचय
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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