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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक ] (३४) हेतु का स्वरूप निश्चितान्यथानुपपत्येक लक्षणो हेतुः ||११|| अर्थ-साध्य के बिना निश्चित रूप से न होना, यह एक लक्षण जिसमें पाया जाय वह हेतु है । विवेचन - साध्य के साथ जिसका अविनाभाव निश्चित हो, अर्थात जो साध्य के बिना कदापि सम्भव न हो वह हेतु कहलाता है । जैसे - अग्नि (साध्य) के बिना धूम कदापि संभव नहीं है अतएव धूम हेतु है । मतान्तर का खण्डन न तु त्रिलक्षणकादिः ॥१२॥ तस्य हेत्वाभासस्यापि सम्भवात् ॥ १३ ॥ अर्थ-तीन लक्षण या पाँच लक्षण वाला हेतु नहीं है । क्योंकि वह हेत्वाभास भी हो सकता है । विवेचन - बौद्ध लोग पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्व और विपक्षासत्व यह तीन लक्षण जिसमें पाये जाएँ उसे हेतु मानते हैं । नैयायिक लोग इन तीन में सत्प्रतिपक्षता और अबांधितविषयता को सम्मिलित करके पाँच लक्षण वाला हेतु मानते हैं । इनका अर्थ इस प्रकार है: ( १ ) पक्षधर्मत्व - हेतु पक्ष में रहे (२) सपक्ष सत्व - हेतु सपक्ष ( अन्वय दृष्टान्त ) में रहे. (३) विपक्षासत्व - हेतु विपक्ष में न रहे
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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