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________________ (१६) [ प्रथम परिच्छेद द्वारा हो चुका था, उसमें विशेष का निश्चय हो जाना अवाय है । जैसे - 'यह मनुष्य दक्षिणी ही है ।' धारणा का स्वरूप स एव दृढ़तावस्थापन्नो धारणा ॥ १० ॥ - अर्थ — अवाय ज्ञान जब अत्यन्त दृढ़ हो जाता है तब वही अवाय, धारणा कहलाता है । विवेचन- - धारणा का अर्थ संस्कार है । हृदय - पटल पर यह ज्ञान इस प्रकार अंकित हो जाता है कि कालान्तर में भी वह जागृत हो सकता है । इसी ज्ञान से स्मरण होता है । हा और संशय का अन्तर संशयपूर्वकत्वादीहायाः संशयाद् भेदः ॥ ११ ॥ अर्थ - ईहा ज्ञान संशयपूर्वक होता है अतः वह संशय से भिन्न है । विवेचन - ईहा ज्ञान में विशेष का निश्चय नहीं होता और संशय भी अनिश्चयात्मक है, ऐसी अवस्था में दोनों में क्या भेद है ? इस प्रश्न का समाधान यहाँ यह किया गया है कि संशय पहले होता है और ईहा बाद में उत्पन्न होती है अतएव दोनों भिन्न २ हैं । इसके अतिरिक्त संशय में दोनों पलड़े बराबर होते हैं - दक्षिणी और पश्चिमी की दोनों कोटियाँ तुल्य बल वाली होती हैं; ईहा में एक पलड़ा भारी
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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