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________________ (१५) [प्रथम परिच्छेद हैं। आगे तीसरे अध्याय में परोक्ष के पांच भेद बतलाये जायेंगे। उनमें अनुमान और पागम भी हैं। उपमान प्रमाण सादृश्यप्रत्यभिज्ञान नामक परोक्षभेद में अन्तर्गत है और अर्थापत्ति अनुमान से भिन्न नहीं है । अभाव प्रमाण यथायोग्य प्रत्यक्ष आदि में समाविष्ट है। अतएव प्रत्यक्ष और परोक्ष-यह दो भेद ही मानना उचित है । प्रत्यक्ष का लक्षण स्पष्टं प्रत्यक्षम् ॥ २ ॥ अनुमानाद्याधिक्येन विशेषप्रकाशनं स्पष्टत्वम् ॥ ३ ॥ अर्थ स्पष्ट (निर्मल) ज्ञान को प्रत्यक्ष कहते हैं। अनुमान आदि परोक्ष प्रमाणों की अपेक्षा पदार्थ का वर्ण, आकार आदि विशेष मालूम होना स्पष्टत्व कहलाता है । विवेचन-प्रत्यक्ष ज्ञान स्पष्ट होता है और परोक्ष अस्पष्ट होता है। यही दोनों प्रमाणों में मुख्य भेद है। प्रत्यक्ष प्रमाण में रहने वाली स्पष्टता क्या है, यह उदाहरण से समझना चाहिए। मान लीजियेएक बालक को उसके पिता ने अग्नि का ज्ञान शब्द द्वारा करा दिया। बालक ने शब्द (आगम) से अग्नि जान ली। इसके पश्चात् फिर धूम दिखा कर अग्नि का ज्ञान करा दिया । बालक ने अनुमान से अग्नि जान ली। तदनन्तर बालक का पिता जलता हुआ अँगार उठा लाया और बालक के सामने रख कर कहा-देखो, यह अग्नि है। यह प्रत्यक्ष से अग्नि का जानना कहलाया। यहाँ पहले दो ज्ञानों की अपेक्षा, अन्तिम ज्ञान अर्थात् प्रत्यक्ष द्वारा अग्नि का विशेष वर्ण, स्पर्श आदि का जो साफ-सुथरा ज्ञान
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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