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________________ द्वितीय परिच्छेद प्रत्यक्ष प्रमाण का विवेचन ८० प्रमाण के भेद तद् द्विभेदं प्रत्यक्षं च परोक्षं च ॥ १ ॥ अर्थ - प्रमाण दो प्रकार का है - (१) प्रत्यक्ष और (२) परोक्ष विवेचन - प्रमाण के भेदों के सम्बन्ध में अनेक मत हैं 1 अलग-अलग दर्शनकार प्रमाणों की संख्या अलग-अलग मानते हैं । जैसे - चार्वाक - (१) प्रत्यक्ष (२) अनुमान - बौद्ध - (१) प्रत्यक्ष वैशेषिक – (१) प्रत्यक्ष (२) अनुमान (३) आगम नैयायिक - ( १ ) प्रत्यक्ष (२) अनुमान (३) आगम (४) उपमान प्रभाकर - (१) प्रत्यक्ष (२) अनुमान (३) आगम (५) अर्थापत्ति उपमान भाट्ट - ( १ ) प्रत्यक्ष (२) अनुमान (३) आगम (४) उपमान (५) अर्थापत्ति (६) अभाव चार्वाक प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मान कर प्रत्यक्ष की प्रमाणता और अनुमान की प्रमाणता सिद्ध नहीं कर सकता । इसके अतिरिक्त वह परलोक आदि का निषेध भी नहीं कर सकता है। अतएव अनुमान प्रमाण को स्वीकार करना आवश्यक है । शेष समस्त वादियों के माने हुये प्रमाण जैनदर्शन सम्मत दो भेदों में ही अन्तर्गत हो जाते.
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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