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________________ प्रमाण -नय-तत्त्वालोक ] (१४०) प्रकार दूसरे अंरा का अपलाप करने से यह नयाभास हो गया है । वेदान्त दर्शन पर संग्रहाभास है क्योंकि वह एकान्त रूप से सत्ता को तत्व मानता और विशेषों को मिथ्या बतलाता है । अपर संग्रहनय '' 1 द्रव्यत्वादीनि अवान्तरसामान्यानि मन्वानस्तद्भेदेषु. गजनिमीलिकामवलम्बमानः पुनरपरसंग्रहः ॥ १६॥ धर्माधर्माकाशकालपुद्गलजीवद्रव्याणामैक्यं द्रव्यत्वाभेदादित्यादिर्यथा ॥ २० ॥ अर्थ - - द्रव्यत्व पर्यायत्व आदि अपर सामान्यों को स्वीकार करने वाला और उन पर सामान्यों के भेदों में उदासीनता रखने. वाला नय अपर संग्रहनय कहलाता है || जैसे -- धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव द्रव्य सब एक हैं क्योंकि सब में एक द्रव्यत्व विद्यमान है || विवेचन - छहों द्रव्यों में समान रूप से रहने वाला द्रव्यत्व अपर सामान्य है । अपर संग्रह नय, अपर सामान्य को विषय करता 1 अतः इसकी दृष्टि में द्रव्यत्व एक होने से सभी द्रव्य एक हैं । अपरसंग्रहाभास द्रव्यत्वादिकं प्रतिजानानस्तद्विशेषान्निहनुवानस्तदाभासः ॥ यथा द्रव्यत्वमेव तत्त्वं ततोऽर्थान्तरभूतानां द्रव्याणामनुपलब्धेः ।। २२ ।। ,
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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