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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (११८) ___ अर्थ हेत्वाभास तीन हैं-(१)असिद्ध हेत्वाभास (२)विरुद्धहेत्वाभास (३) अनैकान्तिक हेत्वाभास । विवेचन--जिसमें हेतु का लक्षण न हो फिर भी जो हेतु सरीखा प्रतीत होता हो वह हेत्वाभाम है। उसके उपर्युक्त तीन भेद हैं। प्रसिद्ध हेत्वाभास यस्यान्यथानुपपत्तिप्रमाणेननप्रतीयते सोऽसिद्धः॥४८ स द्विविध उभयासिद्धोऽन्यतरासिद्धश्च ॥ ४६॥ उभयासिद्धो यथा-परिणामी शब्दःचाक्षुषत्वात् ॥५०॥ अन्यतरासिद्धो यथा-अचेतनास्तरवी, विज्ञानेन्द्रियायुनिरोधलक्षणमरणरहितत्वात् ॥ ५१ ॥ अर्थ-जिसकी व्याप्ति प्रमाण से निश्चित न हो उसे प्रसिद्ध हेत्वाभाम कहते हैं । . . वह दो प्रकार का है-उभयासिद्ध और अन्यतरासिद्ध । 'शब्द परिणामी है, क्योंकि चाक्षुष है,' यहाँ चाक्षुषत्व हेतु उभयासिद्ध है। ____ 'वृक्ष अंचेतन हैं, क्योंकि वे ज्ञान, इन्द्रिय और आयु की समाप्ति रूप मृत्यु से रहित हैं' यहाँ अन्यतगसिद्ध हेतु है ॥ विवेचन-जो हेतु वादी को प्रतिवादी को अथवा दोनों को सिद्ध नहीं होता वह असिद्ध हेत्वाभास कहलाता है। जो दोनों को सिद्ध न हो वह उभयासिद्ध होता है। जैसे यहाँ शब्द का चाक्षुषत्व
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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