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________________ [षष्ठ परिच्छेद विवेचन-प्रमाण. प्रमेय (घट आदि) को नहीं जानता, ऐसा कहने वाले से पूछना चाहिए-तुम प्रयागण को जानते या नहीं? गदि नहीं जानते तो कैसे कहते हो कि प्रमाण,प्रमेय को नहीं जानता ? अगर जानते हो तो तुम्हारा ज्ञान प्रमाण है या नहीं? नहीं है तो तुम्हाग कथन कोई स्वीकार नहीं कर सकता। यदि तुम्हारा ज्ञान प्रमाण है तो उसने प्रमाण सामान्य रूप प्रमेय को जाना है, यह बात तुम्हारे ही कथन से सिद्ध हो जाती है। अतएव 'प्रमाण, प्रमेय को नहीं जानता' यह प्रतिज्ञा स्ववचन बाधित है। 'मेरी माता वन्ध्या है', 'मैं आजीवन मौनी हूँ,' इत्यादि अनेक स्ववचन बाधित के उदाहरण समझ लेना चाहिए । __ अनभीप्सितसाध्यधर्मविशेषण पक्षाभास अनभीप्सितसाध्यधर्मविशेषणो यथा-स्याद्वादिनःशाश्वतिक एव कलशादिरशाश्वतिक एव वेति वदतः ॥४६॥ अर्थ-घट एकान्त नित्य है अथवा एकान्त अनित्य है, ऐमा बोलने वाले जैन का पक्ष अनभीमित साध्य-धर्म-विशेषण पक्षाभास होगा। विवेचन-जिस पक्ष का साध्य वादी को स्वयं इष्ट न हो, वह अनभीप्सित मा० ध० वि० पक्षाभाष कहलाता है । जैन अनेकान्तवादी हैं। वे घट को एकान्त नित्य था एकान्न अनित्य नहीं मानते । फिर भी अगर कोई जैन ऐमा पक्ष बोले तो वह अनभीप्सित सा० ध० वि० पक्षाभान होगा। हेत्वाभास के भेद असिद्धविरुद्धानेकान्तिकास्त्रयो हेत्वाभासाः॥४७॥
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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