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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (१०८) अर्थ-अतएव धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष रूप पुरुषार्थों की सिद्धि करने वाला प्रमाण और प्रमाण-फल का व्यवहार वास्तविक ही स्वीकार करना चाहिये। आभासों का निरूपण प्रमाणस्य स्वरूपादिचतुष्टयाद्विपरीतंतदाभासम् ॥२३॥ अर्थ---प्रमाण के स्वरूप, संख्या, विषय और फल से विपरीत स्वरूप आदि स्वरूपाभास, संख्याभास, विषयाभास और फलाभास कहलाते हैं। विवेचन-प्रमाण का जो स्वरूप पहले बतलाया है उससे भिन्न स्वरूप, स्वरूपाभास है । प्रमाण के भेदों से भिन्न प्रकार के भेद मानना संख्याभास है | प्रमाण के पूर्वोक्त विषय से भिन्न विषय मानना विषयाभास है और पूर्वोक्त फल से भिन्न फल मानना फलाभास है। स्वरूपाभास का कथन अज्ञानात्मकानात्मप्रकाशकस्वमात्रावभासकनिर्विकल्पकसमारोपाः प्रमाणस्य स्वरूपाभासाः ॥२४॥ यथा सन्निकर्षाद्यस्वसंविदितपरानवभासकज्ञान-दर्शनविपर्यय-संशयानध्यवसायाः ॥ २५ ॥ अर्थ-अज्ञान-अनात्म प्रकाशक-स्वमात्रप्रकाशक-निर्विकल्पक ज्ञान, और समारोप प्रमाण के स्वरूपाभास हैं।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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