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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला। २३ अन्य अर्थका अनुभवन है तैसैं ही आपका है । तहां जैसैं घट आदिक शब्द है तिनिका उच्चार किया विना भी घट आदि वस्तुका ज्ञानविय तदाकार अनुभव होय है तैसैं ही 'मैं हूं मैं हूं' ऐसा जो अन्तरङ्गकै विर्षे सन्मुख होतें आपका तदाकारपणा करि प्रतिभास होय है सो शब्दके उच्चार किये विना ही आपकरि अनुभव कीजिये है ॥ १० ॥ ___ आगें इस ही अर्थकू युक्तिपूर्वक अन्यवादीका उपहाससहित वचन जैसैं होय तैसैं सूत्र कहैं हैं; को वा तत्प्रतिभासिनमर्थमध्यक्षमिच्छस्तदेव तथा नेच्छेत् ॥ ११ ॥ __याका अर्थ-तिस ज्ञान करि प्रतिभास्या जो अर्थ कहिये वस्तु ताकू प्रत्यक्ष इष्ट करता संता पुरुष ऐसा कौन है जो तिस ज्ञानहीकू प्रत्यक्ष इष्ट न करे, इष्ट करै ही । इहां ' को या' ऐसा कहने से लौकिक जन तथा परीक्षक जन सर्व ही लेणें । बहुरि 'तत्प्रतिभासिनं' कहिये तिस ज्ञानकरि प्रतिभासनेंका जाका स्वभाव होय सो लीजिये । ऐसा जो प्रत्यक्ष विषयरूप वस्तु ताकू प्रत्यक्ष इष्ट करता पुरुष सो ऐसा कौन है जो 'तदेव' कहिये सो ही ज्ञान ताहि 'तथा' कहिये प्रत्यक्षपणांकार नाही इष्ट करै 'अपि तु' कहिये निश्चय” इष्ट करै ही करै। जा” विषयी जो ज्ञान ताका प्रत्यक्षपणां धर्म है सो उपचार करि ताके विषयभूत पदार्थकू प्रत्यक्ष कहिये है, मुख्य तौ प्रत्यक्षपणां ज्ञानका धर्म है । इह ऐसा जाननां-जो मुख्यका अभाव होतें बहुरि प्रयोजन अरु निमित्त होतें उपचार प्रवत्तै है सो इहां अर्थकै तौ प्रत्यक्षपणां मुख्य नांही है अरु प्रत्यक्षपणां मुख्य धर्म ज्ञानका है सो ताकै विषयभूत अर्थ वि. प्रत्यक्षपणांका उपचार है सो प्रयोजन तौ इहां व्यवहारका प्रवर्त्तना है अरु निमित्त इहां ज्ञानकै अरु वस्तुकै विषयविषयीभाव संबंध है सो है,
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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