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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला । मानैं हैं । बहुरि अर्थका अपूर्व विशेषण है सो गृहीतग्राही पहले ग्रहण किया-जान्यां ताहीकू ग्रहण करै-जानै ऐसा जो धारावाही ज्ञान ताकै प्रमाणताका निषेधकै आर्थ है, धारावाहीज्ञान प्रमाणका फलरूप प्रमिति है करणस्वरूप प्रमाण नाही । बहुरि स्वपदका ग्रहणते ज्ञानकू परोक्षही मानैं ऐसे मीमांसकमती तथा ज्ञान स्वसंवेदनस्वरूप नाही परही• जान है-आपकू आप जानै नांही ऐसे मानने वाले सांख्यमती तथा ज्ञान है सो दूसरे ज्ञान करि जानिये है आपकू आपही जानें नाही ऎसैं माननेवाले यौगमती नैयायिक इनिका निषेध है; ज्ञान स्वपरप्रकाशक है। ऐसैं अव्याप्ति अतिव्याप्ति असंभव ऐसे तीन लक्षणके दोष हैं तिनि” रहित भलै प्रकार ठहरया निश्चय भया प्रमाणका लक्षण है। ऐसैं यहु सूत्र है सो प्रमाणभूत है। तहां अनुमानप्रमाणका प्रयोगस्वरूप या सूत्रकू दिखाइए है;-तहां प्रमाण तौ इहां धर्मी है ता वि. यह लक्षण कह्या सो साध्य है, बहुरि प्रमाण जो धर्मी सो ही इहां हेतु कहनां । इहां प्रश्न;-जो प्रमाण शब्दकै तौ प्रथमा विभक्ति है अर हेतु विर्षे पंचमी होय है सो प्रमाण शब्द हेतु कैसैं ? ताका समाधान;-जो कोई जायगां प्रथमा विभक्ति अंतपदभी हेतुस्वरूप होय है, जैसैं कह्या है 'प्रत्यक्षं विशदं ज्ञानं' इहां साध्य साधनका प्रयोग करिये तब प्रथमाभी हेतुरूप है, इस सूत्रका प्रयोग ऐसे किया है, “प्रमाण है सो स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मक ज्ञान है, काहे तैं जाते प्रमाणपनां याही है, तातें जो स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मक ज्ञान नाहीं सो प्रमाण नाहीं जैसे संशयादिक स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मक नाही ते प्रमाणभी नाही तथा घट आदि जडपदार्थ ते भी ऐसे नाही ते प्रमाण नाहीं, बहुरि प्रमाण है सो ऐसा है, ता” स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मक ज्ञान है सो ही प्रमाण
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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