SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला। २२१ स्पष्टीकृतं कतिपयैर्वचनैरुदारै बोलप्रबोधकरमेतदनन्तवीर्यैः ॥ ४॥ याका अर्थ-तिस हीरपके आग्रहके वशतैं मैं सत्य आचार्य अनंतवीर्य माणिक्यनंदिकृत अगाधबोधरूप जो शास्त्र ताहि केई विस्तार रूप वचननि करि यह स्पृष्ट किया है, कैसा किया है-वाल : जे मंदबुद्धी तिनिकै प्रकृष्ट ज्ञानका करन हारा है, बहुरि हीरप कैसा हैनिर्मल है बड़ी कीर्ति जाकी ॥ ४ ॥ ऐसें परीक्षामुख प्रकरणकी लघुवृत्ति प्रमेयरत्नमाला है दूसरा नाम जाका सो समाप्त भई ॥ छप्पय। कमो प्रमाण स्वरूप, बहुरि संख्याविधि नीकी, फुनि तसु विषय विचार, सार फल विधि हू लीकी । तदाभास विस्तार कियो, परमत निषेध कर सुनि भवि लखै यथा स्वरूप, निज परमत जिम वर ॥ मुनिराज बड़ो उपकार यह, कियो परीक्षामुखकथन । तसु देश वचनिका शुभ बनी, सुगम पढन सुनना मथन ।। आगें या वचनिका होनेके समाचार लिखिये है (दोहा) ग्रंथ परीक्षामुखतनी, बनीं वचनिका येह । समाचार ताके कहूं, सुनों भव्य जुतनेह ॥१॥ (चौपई ) देश दुढाहर जयपुर जहां, सुवस वसैं नहिं दुःखी तहां । नृप जगतेश नीतिवलवान, ताकै बड़े बड़े परधान ॥ २ ॥ १ मनन.
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy