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________________ २१२ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित याका अर्थ-जैसें तर्ककै व्याप्तिविषयपणां होते अन्य प्रमाणपणां है बौद्धादिककै अन्य प्रमाण आवै है तैसैं ही परबुद्धयादि अनुमानका विषय मानिये तब अन्य प्रमाणपणां आवै है, अर जो कहै तर्क अप्रमाण है तौ अप्रमाणकै व्याप्तिका व्यवस्थापकपणां नांही है । इहां ऐसा विशेष--जो एक प्रत्यक्ष ही प्रमाणका वादी चार्वाक है ताकरि बहुरि प्रत्यक्ष आदिमें एक एक अधिक प्रमाणका वादी बौद्धादिक है तिनिकरि स्वसंवेदन प्रत्यक्ष इन्द्रियप्रत्यक्ष ऐसै तौ प्रत्यक्षके भेद अर प्रत्यक्ष अनुमान आदि भेदप्रतिभासका भेदकरि ही प्रमाणका भेद वक्तव्य है अन्य किछू गति नांही है । सो प्रतिभासका भेद चार्वाक प्रति तो प्रत्यक्ष अनुमानविर्षे है अर बौद्धादिकमै व्याप्तिज्ञान जो तर्क अर प्रत्यक्षादिप्रमाण इनिविर्षे है, तातै सर्वहीकी प्रमाणसंख्या विगड़े है ॥ ५९॥ सो ही दिखाऐं हैं; प्रतिभासभेदस्य च भेदकत्वात् ॥६॥ याका अर्थ-जाते प्रतिभास भेदकै ही प्रमाणका भेदकपणां है तारौं सर्वकी संख्या विगड़े है। चार्वाककै तौ अनुमान विगाडै है जातें प्रत्यक्षतै अनुमानका प्रतिभास जुदा है। अर बौद्धादिककै तर्क विगा है जातै प्रत्यक्ष अनुमानादिकतै तर्कका प्रतिभास जुदा है ॥६०॥ ___ आगें अब विषयाभासकू दिखावनेंकू कहें हैं;विषयाभासः सामान्यं विशेषो दयं वा स्वतंत्रम्॥६१ ___ याका अर्थ-प्रमाणका विषय सामान्यही एक कहै अथवा विशेषही एक कहै अथवा दोऊही स्वाधीन कहै तौ विषयाभास है ॥६१॥ आगें पूछे है कि इनिकै विषयाभासपणां कैसैं है तहां कहैं हैं; तथाऽप्रतिभासनात्कार्याकरणाच ॥६२॥
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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