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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला। छाया भी होय ही । ऐसैं छत्रनामा कारणहेतु छायानामा साध्यकू साधै है तातें कारणहेतु भया ॥ ६२ ॥ आग पूर्वचर हेतुकू कहैं हैं; उदेष्यति शकटं कृत्तिकोदयात् ॥ ६३ ॥ याका अर्थ-रोहिणी नक्षत्र उगिसी जातें कृत्तिका नक्षत्रका उदय देखिये है । इहां 'मुहूर्तान्ते' ऐसा सम्बंध करनां जातें ऐसा नियम है जो कृत्तिकाका उदय भये पीछ एक मुहूर्तमैं रोहिणीका उदय होय है। सो पहले कृत्तिकाका उदय देख्या तब जानी रोहिणी एक मुहूमैं अवश्य उगिसी, ऐसा पूर्वचर हेतु कृत्तिकाका उदय भया ॥६३॥ आगैं उत्तरचर लिंगकू कहैं हैं; उद्गाद्भरणिः प्राक्तत एव ॥ ६४ ॥ ___याका अर्थ-भरणी नक्षत्रका उदय पहले भया जातें कृत्तिकाका उदय देखिये है । इहां मुहूर्ततें पहलैं ऐसा संबंध करनां । काहू. कृत्तिका नक्षत्रका उदय देखिकरि जान्यां जो यातैं मुहूर्त पहले भरणीका उदयका नियम है सो वह भी उदय पहले भया है । यहु भरणीके उदय पीछे उदय है तातें उत्तरचर हेतु कहिये ॥ ६४ ॥ आरौं सहचर लिंगकू कहैं हैं; अस्त्यत्र मातुलिंगे रूपं रसात् ॥ ६५ ॥ याका अर्थ-इस मातुलिंग कहिये विजोराकैविौं रूप है जाते रस है । काहू. अंधारेमैं मातुलिंगका रसका स्वाद लिया तब जान्यां यह मातुलिंग है तामैं रूप भी है । इहां रस हेतु है सो रूप” सहचर. है । ऐसैं अविरुद्धोपलब्धि हेतुके छह भेद कहे ॥६५॥ आ विरुद्धोपलब्धिकू कहैं हैं;
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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