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________________ विषय सूची। प्रथम समुद्देश? १९ पं. जयचंद्रजी विरचित मंगल और प्रतिज्ञा तथा भाषाटीका बनानेका प्रयोजन। पं. जयचंद्रजी विरचित मूल ग्रंथ रचनाके संबंधमें कुछ हेत्वात्मक वाक्य। संकृत टीकाकारका मंगलाचरण। माणिक्यनंदिजीको नमस्कार तथा परीक्षामुख और प्रमेयरत्नमालाकी प्रमाणीकता विषयक कथन । टीका बननेका संबंध और टीकाके द्वितीय नामका निरुक्त्यक अर्थ । तथा परीक्षामुख बननेका प्रयोजन। न्याय तथा प्रमेयरत्नमाला शब्दका निरुक्तिपूर्वक अर्थ। प्रमाण प्रमाणाभासरूप प्रतिज्ञा। ग्रंथकी उपादेयताके कारण अभिधेयादिका निरूपण । मंगलाचरणविषयक शंका और उसका समाधान । प्रमाणका लक्षण तथा तद्. पत्र. विषयक अन्य प्रमाण कल्प१ नाओंका परिहार । ज्ञानही प्रमाण है इस विष यको दिखानेमें सहेतुकताका २ निरूपण। बोद्धकल्पित ज्ञान प्रमाणविषयक अनध्यवसायताका खंडन और अध्यवसायताका मंडन। दो प्रकारसे अपूर्वार्थका निरूपण। परपदार्थके समान ज्ञान अपनाभी निश्चय करानेवाला है। इत्यादि विषयका कर्मकतृकर| णादि द्वारा सोदाहरण निरूपण । ज्ञानके स्वप्रकाशकहेतुका विशेषतासे निरूपण। ज्ञानके स्वप्रकाशकत्वमें दीपकका दृष्टान्त । अभ्यस्तदशामें ज्ञान स्वतः प्रणाम है और अनभ्यस्त दशामें परतः प्रमाण है इस विषयका निरूपण तथा मीमांसक मतका ११ । खंडन ।
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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