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________________ ११ विद्वान होकर जो अहंकार रहित होगा वही अपने वचनादि प्रयत्नों द्वारा प्राणियोंका उपकार कर सकता है तथा वही प्रमाणताका पात्र हो सकता है । - खंडेलवाल जातिभूषण - पं. जयचंद्रजी छाबड़ामें ये सर्व गुण मौजूद थे इसी कारण इनकी समाजमें विशेष प्रतिष्ठा रही तथा आगे भी कायम रहेगी । उक्त पंडितजीके विषयमें जो कुछ हमने लिखा है वह बहुत ही थोड़ा संक्षेपतासे लिखा है यदि विशेष लिखते तो एक ग्रंथका ग्रंथही बन जाता । पंडितजी ने अपने थोडेसे जीवन कालमें इतने टीका तथा विनतीस्वरूप ग्रंथों का निर्माण कर अपनी बुद्धिकी बहुत ही विचक्षण विलक्षणताका परिचय दिया है । हमने सुना है कि उक्त पंडितजी साहेबने इन ग्रंथोंके अलावा अन्य भी कई ग्रंथोंपर टीका की है। यदि यह बात सर्वांग सत्य है तो कहना पड़ेगा कि पंडि जी में कोई विलक्षण शक्ति थी । पाठकगण पंडितजी के विषय में विशेष जानने की इच्छा रखते हों तो उनके निर्माण ग्रंथों में उनके हाथकी लिखी हुई प्रशस्तिसे अपनी इच्छा की पूर्ण पूर्ति करें । विनीत रामप्रसाद जैन- बम्बई ।
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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