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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला । १११ आगैं बाल जे अल्पज्ञानी तिनिके समझावनें के अर्थि उदाहरण आदि तीन प्रयोग शास्त्रविषै अंगीकार किया, तिनि तीननिका स्वरूप दिखावैं है; दृष्टान्तो द्वेधाऽन्वयव्यतिरेकभेदात् ॥ २४ ॥ याका अर्थ - जा त्रिषै साध्य साधन ये दोय अंत कहिये धर्म अन्वयकूं मुख्यकार तथा व्यतिरेककूं मुख्यकरि प्रत्यक्ष दृष्ट होय सो दृष्टान्त है । याका अर्थ ऐसा -- जो दृष्ट कहिये प्रत्यक्ष देखे हैं अन्त कहिये साध्यसाधनलक्षण धर्म जहां ऐसा दृष्टान्तशब्दका अर्थ है । सो दोय प्रकार है— अन्वयदृष्टान्त, व्यतिरेकदृष्टान्त ॥ ४२ ॥ तहां प्रथम अन्वयदृष्टान्तकूं दिखावते सन्ते सूत्र कहैं हैं ;साध्यव्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोऽन्वयदृष्टान्तः ॥ ४३ ॥ याका अर्थ —जा विषै साध्यकरि व्याप्त जो साधन सो नियमरूप दिखाइए सो अन्वय दृष्टांत है । इहां व्याप्तिपूर्वकपणांकरि दिखावै ऐसा अभिप्राय है । जैसैं जहां जहां धूमसहितपणां है तहां अग्निसहितपणां, जैसें रसोईका स्थान, ऐसैं अन्वयदृष्टांत जाननां ॥ ४३ ॥ 1 आमैं दूसरा भेद दिखावै है; - साध्याभावे साधनाभावो यत्र कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः ॥ ४४ ॥ याका अर्थ—जाके न होतें जो न होय सो व्यतिरेक कहिये, सो यहां प्रधान होय सो व्यतिरेक दृष्टांत है । जैसैं जहां अग्नि नांहीं तहां I नियमकरि धूम नांहीं, जैसैं जढ़का निवास । ऐसैं व्यतिरेकदृष्टान्त जाननां 1 8 8 11
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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