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________________ ११० स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित___ आगें विशेष कहैं हैं जो दृष्टान्तादिक कहकरि भी हेतुका समर्थन अवश्य कहनां जातै विना सम• हेतुकै अहेतुकपणां है या सो समर्थन ही श्रेष्ठ है, जो हेतुस्वरूप है अथवा अनुमानका समर्थन भी होहु जातँ साध्यकी सिद्धिविर्षे ताहीका उपयोग है उदाहरण आदिक अनुमानके अवयव नांहीं है, इस ही अर्थरूप कहैं हैं; समर्थनं वा वरं हेतुरूपमनुमानावयवो वाऽस्तु साध्ये तदुपयोगात् ॥४०॥ याका अर्थ-हेतुका समर्थन है सो ही श्रेष्ठ है सो हेतुरूपही है, अर यह समर्थन अनुमानका अवयव भी होहु जातें साध्यविर्षे तिसका उपयोग है-साध्य याते दृढ़ होय हैं । इहां सूत्रमैं पहला 'वा' शब्द है सो नियमकै अर्थि है । बहुरि दूसरा 'वा' शब्द है सो न्यारा पक्षके सूचनेकू है । अब शेष या सूत्रका अर्थ सुगम है ॥ ४० ॥ __ आगें पूछ हैं कि दृष्टांत आदिक विना मन्दबुद्धीनिका समझावनेंका असमर्थपणां है तारौं पक्षहेतुके प्रयोगमात्रहीकरि तिनिकै साध्यकी प्रतिपत्ति कैसैं होय, ऐसैं पूछे सूत्र कहैं हैं; बालव्युत्पत्यर्थ तत्त्रयोपगमे शास्त्र एवासौ न वादेऽनुपयोगात् ॥४१॥ __ याका अर्थ-बाल कहिये अल्पज्ञानी तिनिकै ज्ञान होनेकै अर्थि उदाहरण उपनय निगमन ये तीन अवयव तिनिका अंगीकार होतें भी शास्त्रहीविर्षे तिनका मानना है, अर वादविर्षे नाही जाते वादविषै इनिका उपयोग नाही प्रयोजन नाही-जातें वादके कालवि. शिष्य समझावने नाही, व्युत्पन्ननिहीका वादकैवि अविकार है-जे न्यायविर्षे प्रवीण हैं तिनिह का वादविर्षे अधिकारीपना है ॥४१॥
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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