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________________ भाषा वचनिकायें लिखी हैं । इन सब वचनिका ग्रंथोंकी श्लोकसंख्याका प्रमाण ६० हजारके करीब है। वे १३ प्रन्थ विक्रम सम्वत्के साथ नीचे लिखे प्रमाण हैं। १ सर्वार्थसिद्धि १८६१ २ प्रमेयरत्नमाला (न्याय ) १८६३, ३ द्रव्यसंग्रह वचनिका १८६३ ४ आत्मख्यातिसमयसार १८६४ , ५ स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा १८६६ ,, ६ अष्टपाहुड १८६७ यह इस ग्रंथमालामें जल्दी निकलनेवाला है। ७ ज्ञानार्णव १८६५ ८ भक्तामरस्तोत्र १८७० ९ आप्तमीमांसा (देवागमन्याय) १८८६ यह ग्रंथ इस ग्रंथ मालामें तैयार हो चुका है; १० सामायिकपाठ समय लिखा नही. ११ पत्रपरीक्षा (न्याय) १२ मतसमुच्चय (न्याय) १३ चंद्रप्रभद्वितीयसर्गका न्यायभाग, समय मालूम नहीं. ये सर्व ग्रंथ बड़ेही कठिन गंभीराशयके हैं तथा बड़ेही महत्वके संस्कृत प्राकृत भाषाके हैं । इनमेंसे पांच ग्रंथ तो केवल न्यायके हैं और सभी ग्रंथ उच्च कोटिके तात्विक विषयके हैं तथा धर्ममें दृढ़ता और भक्ति पैदा करनेवाले हैं। आप देशभाषाके पद्य रचना करनेमें भी सिद्ध हस्त थे आपने फुटकर विनतियां वगैरः लिखी हैं उनकी श्लोक संख्या ११०० के करीब होगी तथा द्रव्य संग्रहको भी अपने पद्यमें लिखा है। आपकी १८७० की लिखी हुई एक पद्यात्मक चिठी वृन्दावन विलासमें प्रकाशित हो चुकी है । इन सबसे यह निश्चित होता है कि आप गद्य पद्य बनाने में बहुतही सिद्ध हस्त थे। तथा संस्कृत और प्राकृतमें आपका ज्ञान खूबही चढ़ा बढ़ा था इस विषयका ज्ञान आपके ग्रंथों का अवलोकन करनेसे सभीको हो सकता है।
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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