SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६० से १११५ तक विक्रम संवत् दिया है और विद्याभूषण तथा ए. एम्. आदि पदधारक श्रीसतीश्चद्रजीने अकलंक स्वामीजीको ईसवी ८ वी शताब्दीके विद्वान् स्वीकृत किया है । प्रभाचंद्रजीने प्रमेयकमल मार्तडकी समाप्ति भोजदेवराज्यके समयमें की तथा अपनेको धारा नगरीका निवासी लिखा है। परंतु कई भोजराज्योंके होनेसे प्रभाचंद्रजीका समय भोजराज्यपरही निभरित नहीं रह सकता है। परंतु प्रमेय. कमल मार्तडके अंतिम पद्यसे यह अवश्यही निश्चय हो सकता है-अकलंक देवकेपीछे या अकलंक देवके समयमें। ये दोनों (माणिक्यनंदि-प्रभाचंद्र) आचार्य एकही समयके हैं। इस विषयके विशेष विचारमें हम विद्वानोंके ऊपरही निर्भरित हैं। अनंतजीवीर्याचार्य इन आचार्यके विषयमें हम कुछ भी नहीं लिख सकते क्योंकि इनका जो प्रमेय रत्नमाला नामक ग्रंथ है उसकी प्रशस्तिमें आपने अपने ग्रंथ निर्माणका समय तथा निवास वगैरःका कुछ भी उल्लेख नहीं किया है। तथा आपके समयादिके विषयमें हमें अन्यत्र भी इस समय तक कुछ भी विषय उपलब्ध नहीं हुआ है इस लिये इनके विषयों में इस समय विशेष परिचय देनेके लिये अस. मर्थ हूं। सामन्य परिचयमें भी सिर्फ इतनाही है कि ये आचार्य उच्च कोटिके विद्वान् थे इस विषयका ज्ञान आपके प्रमेयरत्नमाला नामक ग्रंथके अवलोकनसे ही हो जाता है। आपने अपनी जो प्रशस्ति दी है वह अर्थसहित इस ग्रंथके अंतमें लगी हुई है उससे पाठकोंको इनके विषयमें जितना ज्ञान हो सकेगा वस उतनाही ज्ञान हमको है। ग्रथोंके विषयमें भी इस समय आपका एक प्रमेय रत्नमालाही ग्रंथ उपलब्ध है जो कि मुद्रित हो चुका है। पं. जयचंद्रजी छावडा . ढुंढाहरदेशके विशाल जयपुर नगरमें पं. जयचंद्रजी छावड़ाका जन्म तथा निवासस्थान था । आप विक्रम उन्हींसवीं १९०० शताब्दिके एक गण्य तथा मान्य विद्वान् थे । आपके ग्रंथोंका अनुवाद पढ़नेसे मालूम होता है कि आप न्याय अध्यात्म साहित्य वगैर सर्वही विषयके अच्छे विद्वान तथा परोपकारी और उद्यमशील पुरुष थे। इस शताब्दीके विद्वानोंमेंसे पं. टोडरमल्लजीके समान आपही , गणना योग्य तथा माननीय व्यक्ति हो सकते हैं। आपनें १३ तेरह ग्रंथोंपर
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy