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________________ अल-मीमांसा। अर्थ-अवयत्री जे कार्य द्रव्यादिक लिनके अवसव जे कारमादिक तिनसैं सर्वधा भेद मानिये तो देश कालका विशेष होतें भी वृत्ति ठहरै । जैसैं दोय द्रव्य जुड़ें युतसिद्धकै वृत्ति होय तैसें ठहरैं । पर्वतकै अर वृक्षादिकमै भेदरूप वृत्ति है तैसें ठहरै सो एसैं है नाहीं । अवयवी आदिकै अर अवयन आदिकैं तो कथंचित् भेद है । बहुरि मूर्तिक जे कारण, कार्य तिनकैं समानदेशता कहिये एकदेशपना, मानें तो ये भी न ठहरै अत्यन्तभिन्न अनेक मूर्तिक पदार्थक एकदेशमें रहना कैसे बनैं । ऐसें सर्वथा भेदपक्षमें दूषण आवै है ॥ ६३ ॥ आगे फेर प्रश्नोत्तर करें हैं आश्रयाश्रयिभावान्न स्वातंत्र्यं समवायिनाम् । इत्ययुक्तः स संबंधो न युक्तः समकायिभिः ।। ६४ ॥ अर्थ- वैशेषिक कहै है कि समवायी पदार्थ है तिनकै आश्रय आश्रयी भाव है यारौं स्वाधीनपना नाहीं है तातें कार्य कारणादिक कैं देशकालादिकका भेद करि वृत्ति नाहीं है । समवायी पदार्थ तो समवायके आधीन वरतै है । आप ही देश कालके भेद करि वृत्ति कैसे करै ? । ताकू आचार्य कहैं हैं । कि हे वैशेषिक ! समवायी पदार्थनि करि समवाय संबंध भी तो सिन्नही है जुड़या नाहीं है सो युक्त नाही होय है । समवाय पदार्थ जुदा था ताकू जुदे समवायी पदार्थनि तँ कोन नें जोड़या ( मिलाया )। ऐसें सर्वथा भेद मानें तैं दूषणही आबै है ॥ ६४ ॥ ___ आगैं, वैशेषिक कहै कि केवल समवाय सो सत्तासामान्यके समान नित्य ही है । अर कार्य उपजै है तब सत्ता समवायी मानिये है ऐसे समवायकें अर कार्यकें जोड़ है ताकू आचार्य दूषण दिखावे हैं
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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