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________________ १२ अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम् ज्ञानादिक तिस हानिके कार्य देखिये हैं यातें निर्दोष आवरणकी हानि संपूर्ण काहूवि देषिये हैं—साधिये हैं । इहां अतिशायन ऐसा हेतु है याका अर्थ यहू जो यहू हानि बधती बधती देखिये हैं । जैसे कचित् कहिए कहूं कनक पाषाणादिविर्षे कीट कालिमा आदि बाह्य अभ्यन्तर मलका अपणां हेतु जो ताव देतें सर्वथा अभाव होय है तैसैं अल्पज्ञकै तिनका नाशके . हेतु जे सम्यग्दर्शनादिक तिनतें सर्वथा दोष अर आवरणका अभाव होइ है ऐसा सिद्ध होइ है। इहां आवरण तौ ज्ञानावरणादिक कर्मपुद्गलके परिणाम हैं अर दोष अज्ञानरागादिक जीवके परिणाम हैं। बहुरि इहां कोइ कहै—जैसैं अतिशायन हेतु” दोष आवरणकी हानि संपूर्ण साधी । तैसैं कहूं बुद्धि आदिगुणकी भी हानि बघती बधती देखिये हैं सो यह भी कहूं संपूर्ण सधै है ? ताकू कहिए—बुद्धि आदिकी संपूर्ण हानि आत्मा विौं साधिये है तो आत्माकै जड़पणां आवै सो यह बड़ा दोष आवै तातें जीवपुद्गलका संबंधरूप बंधपर्याय. क्षयोपशम रूप बुद्धि है ताका अभाव होइ है सो आत्माका स्वाभाविक ज्ञानादिगुण तो संपूर्ण प्रकट होइ है अर बंधपर्यायका अभाव होइ पुद्गल कर्मजड़रूप भिन्न होय जाय है तैसैं पुद्गलकै बुद्धि आदि गुणका अभावका व्यवहार है । ऐसें वीतराग सर्वज्ञ पुरुष अनुमानकरि सिद्ध होइ है ॥ ४ ॥ आज मीमांसकमती कहैं हैं-जो जीव है सो भावकर्म अज्ञानादिकतें रहित भया होय तौऊ सूक्ष्मादि पदार्थ समस्तकू तौ नांही जानें । अथवा अन्य पदार्थानकू सर्वकू जानै तौ जानूं परन्तु धर्म अधर्मकू सो नांही जानैं ऐसे मानूं भगवान फेर पूछया तब मानूं फेर समंतभद्राचार्य सूत्रकारादिक स्तवन करनेवाले मुनिनकै बुद्धिका अतिशय जनावनेंकी इच्छाकरि भगवानकू कहैं हैं
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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