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________________ आप्त-मीमांसा। होइ, वादी प्रतिवादी निवधि निश्चय करै कोइ प्रकार बाधा नाही आवै तैसैं निश्चय करनां सो परीक्षा है। . बहुरि इहां मीमांसक कहै-जो अल्पज्ञकी तौ सिद्धि होइ है अर सर्वज्ञकी सिद्धि नांही। ताकू कहिए-जो अल्पज्ञ आत्माकी सिद्धि है तौ ताकै निषेध• इस श्लोकके चौथे पदका अर्थ ऐसैं करना जो " कश्चिदेव भवेद्गुरुः” कहिए कौन गुरु है ? यह चित् है—ज्ञान रूप आत्मा है सोई गुरु है---महान् है । जातैं इस चैतन्य आत्माकै अन्य पुद्गलके संबंधः ज्ञानावरण आदिक कर्म हैं तिनके आवरण” अल्पज्ञपणां अर दोषसहितपणां है । सो आवरण दूर भये आत्मा सर्वज्ञ वीतराग होइ है। यह प्रमाणतें सिद्ध है। ऐसैं आप्त सर्वज्ञका निश्चय भये तिसकै वचनरूप आगमका निश्चय होइ, आगमतें सर्व वस्तुका निश्चय होइ । ऐसे निश्चय करतें देवागमादि विभूतिसहितपणांतै अर विग्रहादिमहोदयपणांतें अर तीर्थकरपणांतें तो आप्त सर्वज्ञ सिद्ध न भया तातैं भले प्रकार निश्चय भया है असंभवता बाधकप्रमाण जामैं ऐसा भगवान अरहंत' तुम ही संसारी जीवनिका प्रभू हो स्वामी हो यातें आत्यन्तिक दोषनिका अर आवरणकी हानिकरि अर समस्त तत्वार्थनिका ज्ञातापणांकरि सूत्रकारादि मुनिननैं तुमारा स्तवन किया है ॥ ३॥ __ ऐसैं आचार्य समंतभद्रनैं निरूपण किया तब फेरि मानूं भगवान साक्षात् पूछया जो अत्यंत दोष अर आवरणकी हानि मो विर्षे कौन हेतु” निश्चय करी ? ऐसैं पूछ मायूँ फेरि आचार्य समंतभद्र कहैं हैं दोषावरणयोर्हानिनिःशेषास्त्यतिशायनात् । कचिद्यथा स्वहेतुभ्यो बहिरन्तर्मलक्षयः ॥ ४॥ अर्थ-दोष अर आवरण की हानि सामान्य तौ प्रसिद्ध है । जाते एकदेश हानिः अल्पज्ञनिकै एकदेश निर्दोषपणां अर एकदेश
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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