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सप्तभंगी सकलादेश. इससे यह समझमें आ जाता है कि वस्तुस्वरूपके अनुसार शब्दोंका प्रयोग कैसे करना चाहिए । जैनशास्त्रकार कहते हैं कि वस्तुके प्रत्येक धर्मके विधान और निषेधसे संबंध रखनेवाले शब्द प्रयोग सात प्रकारके हैं। उदाहरणार्थ हम ‘घट को लेकर इसके अनित्य धर्मका विचार करेंगे।
प्रथम शब्दप्रयोग-." यह निश्चित है कि. घट अनित्य है । मगर वह अमुक अपेक्षासे । " इस वाक्यसे अमुक दृष्टिसे घाटमें मुख्यतया अनित्यधर्मका विधान होता है। ..... - दुसरा शब्दप्रयोग-" यह निःसन्देह है कि घट अनित्य
धर्मरहित है, मगर अमुक अपेक्षासे ।" इस वाक्यद्वारा घटमें - अमुक अपेक्षासे, अनित्यधर्मका मुख्यतया निषेध किया गया है।
तीसरा शब्दप्रयोग-किसीने पूछा कि-" घट क्या अनित्य और नित्य दोनों धर्मवाला है ?” उसके उत्तरमें कहना कि "हो, घट अमुक अपेक्षासे, अवश्यमेव नित्य और अनित्य है। यह तीसरा वचन-प्रकार है। इस वाक्यसे मुख्यतया अनित्य धर्मका विधान और उसका निषेध, क्रमशः किया जाता है।
चतुर्य शब्दप्रयोग-“ घट किसी अपेक्षासे अवक्तव्य है।" घट अनित्य और नित्य दोनों तरहसे क्रमशः बताया जा सकता है, जैसा कि तीसरे शब्दप्रयोगमें कहा गया है । मगर यदि क्रम विना-युगपत् ( एक ही साथ ) घटको अनित्य और