SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नयचक्रसार हि० अ० पदार्थ है ? हम देखते हैं कि एक ही मिट्टीमेंसे घडा, फँडा, सिकोरा आदि पदार्थ बनते हैं। घड़ा फोड़ दो और उसी मिट्टीसे बने हुए कँडेको दिखाओ। कोई उसको घडा नहीं कहेगा । क्यों? क्यों मिट्टी तो वही है; परंतु कारण यह है कि उसकी सूरत बदल गई । अब वह घडा नहीं कहा जा सकता है । इससे सिद्ध होता है कि 'घडा' मिट्टीका एक आकार-विशेष है। मगर यह बात ध्यानमें रखनी चाहिए कि-आकार विशेष मिट्टीसे सर्वथा भिन्न नहीं होता है । आकारमें परिवर्तित. मिट्टी ही जब 'घडा' कूँडा आदि नामोंसे व्यवहृत होती है, तब यह कैसे माना जा सकता है कि घडेका आकार और मिट्टी सर्वथा भिन्न है ! इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि घडेका आकार और मिट्टी ये दोनों घडेके स्वरूप हैं । अब यह विचारना चाहिए कि उभय स्वरूपोंमें विनाशी स्वरूप कौनसा है और ध्रुव कौनसा ? यह प्रत्यक्ष दिखाई देता है कि घड़ेका आकार-स्वरूप विनाशी है । क्योंकि घडा फूट जाता है । घड़ेका दूसरा स्वरूप जो मिट्टी है, वह अविनाशी है । क्यों कि मिट्टीके कई पदार्थ बनते हैं और टूट जाते हैं; परन्तु मिट्टी तो वह ही रहती है । ये बातें अनुभवसिद्ध है। हम देख गये हैं कि घड़ेका एक स्वरूप विनाशी है और दूसरा ध्रुव । इससे सहजहीमें यह समझा जा सकता हैं कि वि. नाशी रूपसे घड़ा अनित्य है और ध्रुव रूपसे घड़ा नित्य है । इस तरह एक ही वस्तुमें नित्यता और अनित्यताकी मान्यताको रखनेचाले सिद्धान्त को ' स्याद्वाद' कहा गया है।
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy