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________________ षद द्रव्य मे काल द्रव्य. . (१३) विवेचन-युक्तिद्वारा छे द्रव्य मानना सिद्ध हुवा इस लिये अब इनकी प्ररुपणा करते हैं. इन छे द्रव्यों में पांच सप्रदेशी है. इन के प्रदेश का पिंडपना होनेसे पांच द्रव्यों को अस्तिकाय पना है, और छठ्ठा काल द्रव्य अप्रदेशी है. इस लिये अस्तिकाय पना नहीं कहा. काल में जो द्रव्य का व्यवहार होता है वह गौण है. जैसे वस्तुगत धर्मास्तिकायादि द्रव्य है वैसे काल नहीं है. अगर काल को पिंडरूप से द्रव्य मान लिया जाय तो इसका मान कहां है ? जो मनुष्य क्षेत्र में काल द्रव्य का मान है - दो बाहिर के क्षेत्र में नवा पुराणादि तथा उत्पाद, व्यय कौन करता है ? अगर जो चौदह राजलोक व्यापी मानते हैं तो असंख्यात प्रदेशी मानना चाहिये और प्रदेश मानने से अस्ति कायपना होता है. अब जो असंख्यात प्रदेश मानते हैं तो वे लोक प्रदेश प्रमाण होवेंगे और असंख्यात काल द्रव्य की प्राप्ति होगी. परन्तु काल द्रव्य को तो अनन्त माना है. इस वास्ते इसको पंचास्तिकायिक वर्तना रुप पर्यायपने आरोप करके द्रव्य मानना चाहिये क्यों की अस्तिकायता नहीं है. और सब में इसकी वर्तना है यह पक्ष भी सत्य है यथा स्थानांगसूत्रे," कि भंते अद्धा समयेति वुञ्चति ? गोयमा.! जीवा चेव अजीवा चेव ॥" अर्थात् काल जीव अजीव की वर्तना पर्याय है. उनकी उत्पाद व्यय रुप वर्तना ही काल है. परन्तु इसको अजीव द्रव्यमें गवेषणा करनेका कारण यह है कि जीव वर्तना से अजीव वर्तना अनन्तगुणी है. इस बहुलता के कारण काल को अजीव द्रव्य माना है यथा-विशेषावश्यक भाष्ये-न पश्यति क्षेत्र कालावसौ
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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