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क्यचक्रसार हि० अ० द्रव्य का लक्षण कहते है. जो द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव भेद से समुदाई पने रहे उसको द्रव्य कहते है.
तत्रैकस्मिन् द्रव्ये प्रति प्रदेशे स्वस्व एककार्य करण सामर्थ्यरूपा अनन्ता अविभाग रूप पर्यायास्तेषां समुदायो गुणः । भिन्न कार्य करणे सामर्थ्य रूप भिन्नगुणस्य पर्यायाः। एवं गुणा अप्यनन्ताः प्रति गुणं प्रतिप्रदेशं पर्याया अविभाग रूपाः अनन्तास्तुल्याः प्राय इति ते चास्तिरूपाः प्रतिवस्तुन्यनन्ता स्ततोऽनन्तगुणाः सामर्थ्य पर्यायाः
अर्थ—उस एक द्रव्य के प्रतिप्रदेश में स्व स्वकार्यकरण विषयक सामर्थ्यरूप अनन्तपर्याय है उस अविभागरूप पर्याय के समुदाय को गुण कहते हैं. भिन्न कार्य करणे के लिये जो सामर्यरूप पर्याय है वे भिन्नगुण के पर्याय है. इस तरह गुण भी अनन्त है प्रत्येक गुण और प्रत्येक प्रदेश के विषय अविभागरूप पर्याय अनन्ते हैं. और प्रायः तुल्य है. वे पर्याय प्रत्येक वस्तु में अनन्ते अस्तिरूप हैं उस अस्तिरूप पर्याय से सामर्थ्य पर्याय अनन्त गुण है.
विवेचन-अब गुण का लक्षण कहते हैं. यथा-गुणानामा श्रयो द्रव्यमिति-एक द्रव्य के विषय स्वविषयिक कार्य करने का जिसमें सामर्थ्य है उस सामर्थ्यरूप अनन्त अविभाग पर्याय के समुदाय को गुण कहते हैं. जैसे-सो तंतूवों की एक रस्सी बनाई वे सो तंतुवे अविभागरूप से अस्ति पर्याय हैं. और उस रस्सी से