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________________ द्रव्य का लक्षण (३) तत्र तत्व भेदपर्यायाख्या तस्य जीवादेवस्तुनो भावः स्वरूप तत्वम् अर्थ-द्रव्य, गुण और पर्यायों के लक्षण को निक्षेप नयकर के युक्त तत्व भेद सहित कहता हूं. तत्रजिनागम के विषय तत्ववस्तुस्वरूप की भेद पर्याय से व्याख्या है. जीवादि वस्तु के मूल धर्म को स्वरूप तत्त्व कहते हैं। .. ..... विवेचन-तत्त्व का लक्षण कहते हैं. व्याख्यान करने योग्य जो जीवादि पदार्थ उसके मूल धर्म को स्वरूप तत्त्व कहते हैं. जैसे-सोने का स्वरूप पीला भारी स्निग्धादि है. तथा कार्य आभरणांदि है फलतया इससे अनेक भोग वस्तु प्राप्त होती है. इसी तरह जीव का स्वरूप ज्ञान, दर्शन, चास्त्रिादि अनन्त गुण और कार्य सब भावों का जानपना इत्यादि अभेदपने रहा हुवा धर्म वही सब वस्तु का स्वरूप तत्त्व है. येन सर्वत्राविरोधेन यथार्थतया व्याप्य व्यापक भावेन लक्षते वस्तु स्वरूपं तल्लक्षणं ॥ अर्थ-जिस चिन्हसे विरोधरहित वास्तविकवस्तुस्वरूप व्याप्य व्यापकरूप से जाना जाय उसे लक्षण कहते है. विवेचन-लक्षण का स्वरूप कहते है-जो गुण स्वजातीय सब द्रव्य में यथार्थ भाव से-अव्याप्ति, अतिव्याप्ति, असंभवादि दोष रहित व्याप्य, व्यापकरूप से जाना जाय उसको लक्षण कहते हैं. वह दो प्रकार से हैं (१) लिंगबाह्य-आकाररूप (२) वस्तु में
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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