SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११२) नयस्वरूप. घटः अतो जलाहरणादिचेष्टां कुर्वन् घटः । अतश्चतुरोऽपि नामादिघटानिच्छतः अजुसूत्राद्विशेषिततरं वस्तु इच्छति असौ। शब्दार्थोपपत्तेर्भावघटस्यैवानेनाभ्युपगमादिति अथवा ऋजुसूत्राद शब्दनयः विशेषिततरः ऋजुसूत्रे सामान्येन घटोऽभिप्रेतः, शब्देन तु सद्भावादिभिरनेकधभैरभिप्रेत इति ते च सप्तभंगार पूर्व उक्ता इति ॥ अर्थ-अब शदनयका स्वरूप कहते है. शपति-बुलाना पुकारना उसको शब्द कहते हैं. या शप्यते-वस्तुकानाम लेकर पुकारा जाय उसको शब्द कहते हैं. शब्द वाच्यार्थ ग्राही है ऐसा प्रधान पना जिस नय में हो उसको शब्दनय कहते हैं. कृतक-किया उसका हेतु धर्म जिस वस्तु में हो उसको भाषा द्वारा सहना अर्थात् शब्दका कारण वस्तुका धर्म हुवा जैसे-जलाहरण धर्म जिस में हो उसको घट कहते हैं. यहां भी शब्दसे वाच्य अर्थ ग्रहण हुवा इसीलिये इसका नाम भी शब्दनय कहा है. जैसे-ऋजुसूत्र नय को वर्तमान कालिक धर्स इष्ट है वैसे शब्दादि नय को भी वर्तमान धर्म ही इष्ट हैं । यथा जिसका पेट नीचेका भागगोल और बड़ा हो, उपर संकोचित हो उदर कलितयुक्त जलाहरणक्रिया के सामर्थ प्रसिद्ध घटरूप जो भावघट उसीको घट इच्छे-समझे. परन्तु शेष नाम, स्थापना, द्रव्यरूप तीन घट को शब्दनय घट नहीं मानता. अर्थात् घटशब्द के अर्थ का संकेत जिसमें हो उसी को घट कहे.. घट धातु चेष्टा
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy