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________________ नयस्वरूप. (१०१) चर्तनागुणस्य कालस्य द्रव्यकथनं एतद्गुणे द्रव्यारोपः १ ज्ञानमेवात्मा अत्र द्रव्येगुणारोपः २ वर्तमानकाले अतीतकालारोपः अद्य दीपोत्सवे वीरनर्वाणं वर्तमानकाले अनागतकालारोपः अद्येव पद्मनाभनिर्वाणं, एवं षड् भेदाः कारणे कार्यारोपः बाह्य क्रियायाः धर्मत्वं धर्म कारणस्य धर्मत्वेन कथनं । सङ्कल्पो विभिधः स्वपरिणामरूपः कार्यान्तरपरिणामश्च अंशोपि द्विविधः भिन्नोऽभिनश्चेत्यादि शतभेदोनैगमः। ___अर्थ--कोई ऋजुसूत्रनय को विकल्प से पर्यायार्थिक भी कहते हैं. क्यों कि यह विकल्पनय हैं. अस्तु नैगम के तीन भेद हैं. (१) आरोप (२) अंस (३) संकल्प तथा-विशेषावश्यक में उपचाररूप चौथा भेद भी कहा है. नएकगमो-अभिप्राय उस को नैगमनय कहते हैं. अर्थात् नैगमनय अनेक आशयी है। आरोपनैगम के चार भेद हैं. (१) द्रव्यारोप (२) गुणारोप (३) कालारोप (४] कारणाद्यारोप. (१) गुणविषय द्रव्य का आरोप करना उस को द्रव्यारोप कहते हैं. जैसे वर्तना परिणाम पंचास्तिकाय का परिणमन धर्म है उस को काल धर्म कहना. यहां काल को द्रव्य कहा यह आरोप से है किन्तु वस्तुरूप भिन्न पिंडपने द्रव्य नहीं है. इति द्रव्यारोप (२) द्रव्य में गुण का आरोप करना. जैसे-ज्ञान आत्मा का गुण है परन्तु ज्ञानी वही आत्मा इस तरह ज्ञान को आत्मा कहा. यह गुणारोप । (३) कालारोप-जैसे-वीर भगवान को निर्वाण हुवे
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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