SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१००) नयचक्रसार हि० अ० का समावेस होता है। पर्यायार्थिक के दो भेद हैं (१) सहभावि, (२) क्रमभावि, सहभावि गुण है वह पर्याय में अन्तरभूत है। प्रश्न-द्रव्य पर्याय से व्यतिरिक्त सामान्य; विशेष दो धर्म और भी हैं। तो सामान्य; विशेष दो नय और क्यों नहीं कहते ? उत्तर-तथाहि " द्रव्यपर्यायाभ्यां व्यतिरिक्तयोः सामान्य विशेषयोरप्रसिद्धेः तथाहि द्विप्रकारं सामान्यमुक्तमूर्खतासामान्यं तु प्रतिव्यक्तिसदृशपरिणामलक्षणं व्यञ्जनपर्याय एव" इस पाठ से उर्ध्वसामान्य तो द्रव्य का धर्म हैं । और तिर्यक् सामान्य पर्याय धर्म है । " विशेषोऽपि वैसादृश्यविवर्तलक्षणंपर्याय एवान्तर्भवति नैताभ्यामधिकनयावकाशः "। और विशेष का लक्षण अनेक रीति से वर्तना सो इस का पर्यायार्थिक में अन्तर भाव-समावेस होता है इस लिये सामान्य विशेष को भिन्ननय कहना योग्य नहीं है। द्रव्यार्थिक नय के चार भेद हैं. [१] नैगम (२) संग्रह (३) व्यवहार (४) ऋजुसूत्र और पर्यायार्थिक के तीन भेद हैं (१) शब्द (२) समभिरूढ (३) एवंभूत. विकल्पान्तरे ऋजुसूत्रस्य पर्यायार्थिकताप्यस्ति स नेगमस्त्रिप्रकाराः आरोपांशसङ्कल्पभेदात् विशेषावश्यकेतूपचारस्य भिन्नग्रहणात् चतुर्विधः । न एके गमा आशयविशेषा यस्य स नैगमः तत्र चतुःप्रकारा आरोपः द्रव्यारोपगुणारोपकालारोपकारणाद्यारोपभेदात् तत्र गुणे द्रव्यारोपः पश्चास्तिकाय
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy