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नयचक्रसार हि० अ० कर्तत्वं जीवस्य नन्येषां" जीव कर्ता है अन्य नहीं. " अप्पकत्ता विकत्ताय” इति उत्तराध्ययनवचनात् (३) ज्ञायकता-जानने की शक्ति जीवमें है अथवा ज्ञानलक्षण जीव है. " गिन्हई कायिएणं" इति आवश्यक नियुक्तिवचनात् (४) ग्राहकता ग्रहणशक्ति भी जीवमें है गृह्णामिति क्रियाका कर्ता जीव हैं. (५) भोक्ताशक्ति भी जीवमें है “ जो कुणइ सो भुंजइ ॥ यः कर्त्ता स एव भोक्ता" इति वचनात् (१) रक्षणता (२) व्याप्यव्यापकता (३) आधाराधेयता (४) जन्यजनकता. तत्वार्थवृत्ति में है. (१) अगुरुलघुता (२) विभूता (३) कारणता (४) कार्यता (५) कारकता इन शक्तियों की व्याख्या श्रीविशेषावश्यक में है. (१) भावुकता (२) अभावुकता शक्तिक वर्णन श्रीहरीभद्रसूरिकृत भावुकनामा प्रकरण में है. और कितनीक शक्तियों का वर्णन अनेकान्तजयपताका, सम्मतितर्कादि जैन तर्कग्रन्थोमें लिखा है.
उर्ध्वप्रचयशक्ति, तिर्यक्प्रचयशक्ति, ओघशक्ति और समुचितशाक्ति का वर्णन सम्मतिग्रन्थ में है. और जो द्विगुणात्मा माननेवाले हैं. वे सर्वधर्म शक्तिरूप मानते हैं. उन्होने दानादिलब्धी और अव्याबाधादि सुख को शक्तिरूपसे माना है. यहां व्याख्यानमें जो गुणको करण कहा है वहां कांदिपना है वह सामर्थ्यरूप है जानना, देखना यह कार्य है. कितनीक शक्तियां जीवमें है और कितनकि पंचास्तिकाय में है.. - तथा देवसेनजी कृत नयचक्रमें जीवको अचेतन, स्वभाव, मूर्त स्वभाव तथा पुद्गलपरमाणुको चेतन स्वभाव, अमूर्त स्वभाव