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विशेष स्वभाव लक्षण.
(८९) नारूप से निरावरण है. इसतरह बहुत से अनादि परिणामिक भाव होते हैं. वे अनादि परिणामिक भाव जीवके हैं. और धर्मास्तिकायादिमें सप्रदेशादिकी सामानता है। यह विशेष स्वभाव कहा। भिनभिन्नपर्यायप्रवर्तनस्वकार्यकारणसहकारभूताः पर्यायानुगतपरिणामविशेषस्वभावाः ते च के, १ परिणामिकता, २ कतृता, ३ ज्ञायकता, ४ ग्राहकता, ५ भोक्तृता. ६ रक्षणता, ७ व्याप्याव्यापकता, ८ आधाराधेयता, ६ जन्यजनकता, १० अगुरुलघुता, ११ विभूतकारणता, १२ कारकता, १३ प्रभुता, १४ भावुकता, १५ अभावुकता, १६ स्वकार्यता, १७ सप्रदेशता, १८ गतिस्वभावता, १९ स्थितिस्वभावता, २० अवगाहकस्वभावता, २१ अखण्डता, २२ अचलता, २३ असङ्गता, २४ अक्रियता, २५ सक्रियता इत्यादि स्वीयोपकारणप्रवृत्तिनैमित्तिकाः उक्तं च सम्मतौ आरोपोपचारेण यद्यदपेक्षते तन्न वस्तुधर्म: उपाधिताभवनात् न चोपाधिर्वस्तु- सत्ता इति ॥
अर्थ-विशेष स्वभाव कहते है. भिन्न भिन्न पर्यायका कार्य कारण प्रवर्तन में सहकार भूत जो पर्यायानुगत परिणामिक भाव उसको विशेष स्वभाव कहते हैं. वे अनेक प्रकार से हैं. श्री हरीभद्र सूरिकृत शास्त्र वार्ता समुच्चय ग्रन्थमें कहा है. उसको कहते हैं, (१) सब द्रव्यों के अपने अपने गुण प्रतिसमय कार्य करनेके लिये भिन्न भिन्न परिणाम रूपसे प्रवर्तमान होते है. वे अपने गुणके कारणिक हो उसको परिणमिक स्वभाव कहते हैं, (२) " तत्र