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________________ नयचक्रसार हि० अ० अवगाहकदान, पुद्गलास्तिकायका पुरण गलनपना और जीव द्रव्य का चेतनता लक्षण ये सब द्रव्यों का विशेष गुण है. ऐसे लक्षण जो दूसरे द्रव्यको भिन्न करने के लिये मूल कारण हो वह परम-प्रकृष्ट गुण हैं. वे गुण भी पंचास्तिकाय में मिलते हैं. यथा-अविनाशीत्व, अखंडत्व, अनित्यत्वादि धर्म पंचास्तिकाय में शहस रूपसे हैं. इस वास्ते इनको साधारण गुण कहते हैं. तथा-पंचास्तिकाय के किसी द्रव्यमें कोई गुण मिले और किसी में नमिले उसको साधारणसाधारण गुण कहते है. सव गुण विशेष गुण के अनुयायि वर्तते हैं. इस प्रवर्तना का कारण द्रव्य में परमस्वभभाव पना है. परमस्वभाव के परिणमनसे द्रव्यके सब गुण मुख्य गुण के अनुयायिपने प्रवर्तमान होते हैं. यह परमस्वभाव सब द्रव्यों में है. इस तरहसामान्य स्वभावका स्वरूप कहा. फिर अनेकान्तजयपताका में कहा है। तथास्तित्व, नास्तित्व कर्तृत्व, भोक्तृत्व, असर्वगतत्व, प्रदेश वत्त्वादिभावाः पुनः तत्वार्थ टीकायां पुनरप्यादिग्रहणं कुर्वन् ज्ञापयत्यत्रानअधर्मवत्वं तत्रासक्ताः प्रस्तारयन्तु सर्वे धर्माः प्रतिपदं प्रवचनत्वेन पुंसा यथासंभवमायोजनीयाः क्रियावत्वं पर्यायोपयोगिता प्रदेशाष्टकनिश्चलता एवं प्रकाराः संति भूयांसः अनादिपरिणामिका भवन्ति जीवस्वभावा धर्मादिभिस्तु समाना इति विशेषः ॥ अर्थ-अस्तित्व, नास्तित्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व, असर्वगतत्व और प्रदेशवत्त्वादि अनन्त स्वभावमयि द्रव्य है. तत्वार्थ टीकामें परिणमिक भावके भेदों की व्याख्या करते हुवे कहा है-पुनरपि
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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