SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 658
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३६ सुप्रभसूरि सुबन्धु सोमदत्त ८४,८५,८६,८९, सुमित्र सुवीर सुलसा १७८ १९४ ९१,९२ १६८ ७२१७७,१७८, १७९ सुभद्रा सोमशर्मा सौरसेन . सुमञ्जरी १९४ १४० ५. भौगोलिकनामसूची परिचयसहिता अंग ( पृष्ठ ५३ ) - वर्तमान विहारप्रदेशके भागलपुर, मुंगेर आदि जिले । अमरावती १० ७२, ८६ - अयोध्या ( पृ० ५६, १७८, १७९, १८८ ) - उपासकाध्ययनके आठवें कल्पमें अयोध्याको कोशल देशके मध्यमें बतलाया है ( कोशलदेशमध्यायाममयोध्यायां परि)। श्रुतसागरसूरिकी टोकामें कोशलको विनीतापुर तथा अयोध्याको विनीता बतलाया है। वर्तमानमें उत्तरप्रदेशके फैजाबाद जिलेके निकट अयोध्या नामको नगरी है। भवन्ती मण्डल (पृ० १४२, १५५ ) - इस देशको राजधानी उज्जयिनी नगरी थी । अहिच्छत्र (पु. ८४ ) - सोमदेवने इसे पंचालदेशमें बतलाया है तथा उसे पार्श्वनाथ भगवान्के यशसे । प्रकाशित लिखा है। अहिच्छत्रमें ही भगवान् पार्श्वनाथ पर कमठने घोर उपसर्ग किया था और उन्हें केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई थी। वर्तमानमें उत्तरप्रदेशके बरेली जिलेमें रामनगर नामक गांव ही पुराना अहिच्छत्र नगर था। इन्द्रकच्छदेश (पु. ५९ ) उपासकाध्ययनके नौवें कल्पके अनुसार रोरुकपुर नगर, जिसे मायापुरी भी कहते थे, इन्द्रकच्छ देशमें था। रोरुकपुर बौद्धग्रन्थोंका रोरुक जान पड़ता है जो सौवीर देशको राजधानी था और कच्छकी खाड़ोमें व्यापारका प्रमुख केन्द्र था। .. उज्जयिनी ( पृ० ९५ ) - वर्तमान मध्यप्रदेशमें भोपाल और इन्दौरके मध्यमें स्थित नगरी। उत्तर मथुरा ( पृ० ६२, ६३ ) - दक्षिण मथुरा या मदुरासे भेद दिखलानेके लिए ही उत्तरप्रदेशमें स्थित मथुराको उत्तरमथुरा कहा है । उपासकाध्ययनके १७-१८वें कल्पोंमें सोमदेवने मथुराके प्रसिद्ध जैन स्तूपकी स्थापनाकी कथा दी है और लिखा है कि आज भी इस स्तूपको देव. निर्मित कहा जाता है। सन् १८८९-९०में मथुराके बाहर गोवर्धन रोडके पासमें स्थित कंकाली टोलेसे उक्त प्राचीन जैन स्तूपके अवशेष प्राप्त हुए थे। चौदहवीं शताब्दीके जिनप्रभ सूरिरचित तीर्थकल्पमें भी उक्त जैन स्तूपका वर्णन है। किन्तु सोमदेवने उसको स्थापनाको जो कथा दी है वह तीर्थकल्पसे बिलकुल भिन्न है। जिनप्रभ सूरिसे सोमदेव लगभग चार शताब्दी पूर्व हुए है और इसलिए उन्होंने सम्भवतया स्तूपके स्थापनाकी प्राचीनतम कथा दी है। ईसाकी दूसरी शताब्दीमें भी उस स्तूपको देवनिर्मित कहा जाता था; क्योंकि कंकाली टोलेसे प्राप्त तीर्थकर अरनाथकी एक खड्गासन मूर्ति के नीचे अंकित शिलालेखमें भी 'स्तूपे देव.. निर्मिते' अंकित है। इस शिलालेखपर अंकित ७९ संवत् कुशान वंशो राजा वासुदेवके कालका -सूचक है अतः ७९+ ७८ = १५७ ई० में भी यह स्तूप इतना प्राचीन माना जाता था कि उसे देवनिर्मित कहा जाता था। सोमदेवके अनुसार इसकी स्थापना वज्रकुमारने की थी। सोमदेवके उल्लेखसे ऐसा प्रतीत होता है कि सोमदेवके समय में यह स्तूप वर्तमान था। कंकाली टोलेसे प्राप्त पार्श्वनाथकी एक प्रतिमापर संवत् १०३६ (९८० ई०) अंकित है। अतः ". उस प्रतिमाको स्थापना सोमदेवके समयमें हुई थी।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy