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________________ उपासकाध्ययन . सोमदेवने जो 'परलोकिनोऽभावात् परलोकाभावः' लिखा है यह भी बृहस्पतिका एक सूत्र प्रतीत होता है। कमलशीलने अपनी पंजिकामें 'उक्तं तथाहि' से पूर्व लिखा है, 'तथाहि तस्यैतत् सूत्र-परलोकिनोsभावात् परलोकाभावः इति' तत्त्वोपप्लव (पृ० ५८), न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० ३४३ ) और प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ. ११६ ) में भी यह उद्धृत है। उक्त उद्धरणोंसे स्पष्ट है कि बार्हस्पत्य अर्थात् बृहस्पतिके अनुयायी परलोकी आरमाको नहीं मानते थे अतः परलोकको भी नहीं मानते थे। पृथिवी, जल, अग्नि और वायु केवल चार तत्त्व मानते थे, उन्होंसे कोई चैतन्यकी उत्पत्ति मानते थे और कोई अभिव्यक्ति मानते थे। इस तरह व्याख्याकारों में मतभेद था। अद्वैत ब्रह्मसिद्धिमें लिखा है कि लोकायत या चार्वाक केवल एक काम पुरुषार्थको ही मानते हैं और मृत्यु हो मोक्ष मानते हैं। सोमदेवने यशस्तिलकचम्पूके पांचवें आश्वास (पृ. २५३ )में नोचे लिखा एक प्रसिद्ध श्लोक उद्धृत किया है, "यावजीवेत् सुखं जीवेत् नास्ति मृत्योरगोचरः। भस्मीभूतस्य शान्तस्य पुनरागमनं कुतः ॥" जबतक जियो सुखपूर्वक जियो। मृत्यु अवश्य होगी। अतः शरीरके भस्मीभूत हो जानेपर पुनरागमन कैसे हो सकता है। उक्त आश्वासके ही प. २५७ पर सोमदेवने कई श्लोकोंके द्वारा चार्वाक मतका खण्डन किया है। उसमें से एक श्लोक उपासकाचारमें भी दिया है, "तदहर्जस्तनेहातो रक्षोरप्टेमवस्मृतेः । भूतानन्वयनाज्जीवः प्रकृतिज्ञः सनातनः ॥२९॥" 'उसी दिनके जन्मे हुए शिशुको मौका स्तन पौनेको अभिलाषा देखी जाती है, राक्षस वगैरह देखे जाते हैं, पूर्वभवका स्मरण भी पाया जाता है तथा पृथिवी, जल, अग्नि और वायुका अन्वय जीवमें नहीं पाया जाता अर्थात् जीवमें ज्ञान, सुख, आदि गुण पाये जाते हैं जो पृथिवी वगैरहमें नहीं पाये जाते तथा पृथिवीमें धारण गुण, वायुमें प्रवाहित होनापना, अग्निमें दाहकपना और जलमें द्रवत्व गुण पाये जाते हैं जो जीवमें नहीं पाये जाते, अतः इस प्रकृतिका ज्ञाता जीव सनातन है। ___ आगे और भी लिखा है कि जैसे पृथिवी आदि अनादि-अनिधन हैं वैसे ही आत्मा भी अनादि-अनिधन है। चूंकि पृथिवी आदि भूतोंसे बने शरीरमें चेतन आत्मा व्यक्त होता है इसलिए यदि उसे तुम भूतोंका कार्य मानते हो तो जलसे मोती, काष्ठसे अग्नि, चन्द्रकान्तमणिसे जल, और पंखेसे वायु उत्पन्न होती है उनको भी जलादिका कार्य मानना चाहिए और ऐसा माननेपर तत्त्वोंकी संख्या चार नहीं बन सकती। इस तरह सोमदेवने पांचवें आश्वासमें चार्वाकमतको सयक्तिक समीक्षा की है। वेदान्त अथवा ब्रह्माद्वैत सोमदेवने उपासकाध्ययनके प्रथम आश्वासमें वेदान्तवादियों और ब्रह्माद्वैतवादियोंका नामोल्लेखपूर्वक मत दिया है। साथ हो 'शाक्यः शंकरानुकृतागमः' लिखा है जिसका मतलब है कि शंकरने बौद्ध आगमका अनुसरण किया। इससे प्रतीत होता है सोमदेवके समयमें शंकराचार्यका अद्वैतवाद प्रवर्तित था। और उस समय भी यह प्रवाद फैला हुआ था कि शंकराचार्य प्रच्छन्न बौद्ध था। यह भी प्रकट होता है कि सोमदेव शंकरमतके ग्रन्थोंसे सुपरिचित थे। उन्होंने लिखा है, "यथा घट विघटने घटाकाशमाकाशी भवति तथा देहोच्छेदात्सर्वः प्राणी परे ब्रह्मणि लीयते इति ब्रह्माद्वैतवादिनः।" पृ०४
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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