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________________ -७८४] तत्र विज्ञानस्येदं लक्षणम् विवणे विरसं विद्धमसात्म्यं प्रेमृतं च यत् । मुनिभ्योऽनं न तद्देयं यच्च भुक्तं गदावहम् ।।७७६।। उच्छिष्टं नीचलोकार्हमन्योद्दिष्टं विगहितम् । न देयं दुर्जनस्पृष्टं देवयक्षादिकल्पितम् ॥७८०॥ प्रामान्तरात्समानीतं मन्त्रानीतमुपायैनम् । न देयमापणक्रीतं विरुद्धं वाऽयथर्तुकम् ।।७८१॥ दधिसर्पिपयोभक्ष्यप्रायं पर्युषितं मतम् । गन्धवर्णरसभ्रष्टमन्यत्सर्वे विनिन्दितम् ॥७८२॥ बालग्लानतपःक्षीणवृद्धव्याधिसमन्वितान् । मुनीनुपचरेन्नित्यं यथा ते स्युस्तपःक्षमाः ॥७८३॥ . शाठयं गर्वमशानं पारिप्लवेमसंयमम् । वाक्पारुष्यं विशेषेण वर्जयेद्भोजनक्षणे ॥७८४॥ मिलनेपर भी क्रोध न करना क्षमा है। और पासमें थोड़ा धन होते हुए भी दानमें विशेष अभिरुचि होना शक्ति है । दाताके ये सात गुण बतलाये हैं। [इन गुणोंमें-से विज्ञानगुणका स्वरूप ग्रन्थकार स्वयं बतलाते हैं-] दाताके विज्ञानगुणका स्वरूप जो भोजन विरूप हो, चलितरस हो, फेंका हुआ हो, साधुकी प्रकृतिके विरुद्ध हो, जल गया हो, तथा जो खानेसे रोग पैदा करे, वह भोजन मुनिको नहीं देना चाहिए ॥७७९॥ जो उच्छिष्ट हो-खानेसे बच गया हो, नीच लोगोंके खाने योग्य हो, दूसरोंके लिए बनाया हो, निन्दनीय हो, दुर्जनसे छू गया हो या किसी देवता अथवा यक्षके उद्देश्यसे रखा हो, वह भोजन मुनिको नहीं देना चाहिए ॥७८०॥ जो दूसरे गाँवसे लाया गया हो, या मन्त्रके द्वारा लाया गया हो, या भेटमें आया हो या बाजारसे खरीदा हो या ऋतुके प्रतिकूल हो, वह भोजन मुनिको नहीं देना चाहिए ॥७८१॥ दही, घी, दूध वगैरह जो वासी भी खानेके योग्य है (?) किन्तु जिसका रूप, गन्ध और स्वाद बदल गया हो वह मुनिको देनेके योग्य नहीं है ।।७८२. अवस्थामें छोटे, रोगसे दुर्बल, तपसे दुर्बल, बूढ़े और कोढ़ आदि व्याधियोंसे पीड़ित मुनियोंकी. सदा सेवा करनी चाहिए, जिससे वे तप करनेमें समर्थ हो सकें ॥७८३॥ भोजनके समय कपट, घमण्ड, निरादर, चंचलता, असंयम और कठोर वचनोंको विशेष रूपसे छोड़ना चाहिए अर्थात् वैसे तो इनको सदा ही छोड़ना चाहिए, किन्तु भोजनके समय तो खास तौरसे छोड़ देना चाहिए; क्योंकि इन सबका मनपर अच्छा असर नहीं पड़ता और मन खराब होनेसे भोजनका भी परिपाक ठीक नहीं होता ॥७८४॥ १. अतिजीर्णम् । २. रोगकारि । ३. प्राभृतम् । ४. बासी । ५. अभीष्टं दातुम् । ६. रुजादिक्लिष्टशरोरः । ७. कपटत्वम् । ८. निरादरः। ९. चञ्चलत्वम् ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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