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________________ २८० सोमदेव विरचित [कल्प ३६, श्लोक०७१६ 'नाभौ चेतसि नासा दृष्टौ भाले च मूर्धनि । विहारयन्मनो हंसं सदा कायसरोवरे ॥७१६॥ यायाव्योम्नि जले तिष्ठेन्निषीदेदनलाचिषि । मनोमरुत्प्रयोगेण शस्त्रैरपि न बाध्यते ॥७२०॥ जीवः शिवः शिवो जीवः किं भेदोऽस्त्यत्र कश्चन । पाशबद्धो भवेजोवः पाशमुक्तः शिवः पुनः ॥७२१॥ साकारं नश्वरं सर्वमनाकारं न दृश्यते। पक्षद्वयविनिमुक्तं कथं ध्यायन्ति योगिनः ॥७२२॥ अत्यन्तं मलिनो देहः पुमानत्यन्तनिर्मलः। देहादेनं पृथक्कृत्वा तस्मानित्यं विचिन्तयेत् ॥७२॥ तोयमध्ये यथा तैलं पृथग्भावेन तिष्ठति । तथा शरीरमध्येऽस्मिन्पुमानास्ते पृथक्तया ।।७२४॥ कायरूपी सरोवरके नाभिदेशमें,चित्तमें, नाकके अग्रभागमें, दृष्टिमें, मस्तकमें अथवा शिरोदेशमें मनरूपी हंसका विहार सदा कराना चाहिए । अर्थात् ये सब ध्यान लगानेके स्थान हैं,इनमेंसे किसी भी एक स्थानपर मनको स्थिर करके ध्यान करना चाहिए ॥ ७१९ ॥ जो मन और वायुको साध लेता है वह आकाशमें विहार कर सकता है, जलमें स्थिर रह सकता है और आगकी लपटोंमें बैठ सकता है। अधिक क्या ? शस्त्र भी उसका कुछ विगाड़ नहीं कर सकते ॥ ७२० ॥ जीव शिव अर्थात् परमात्मा है और परमात्मा जीव है । इन दोनोंमें क्या कुछ भी भेद है ? जो कर्मरूपी बन्धनसे बँधा हुआ है वह जीव है और जो उससे मुक्त हो गया वह परमात्मा है अर्थात् आत्मा और परमात्मामें शुद्धता और अशुद्धताका अन्तर है, अन्य कुछ भी अन्तर नहीं है। शुद्ध आत्माको ही परमात्मा कहते हैं ॥ ७२१ ॥ आत्मध्यानके विषयमें प्रश्न और उत्तर जो साकार है वह विनाशी है और जो निराकार है वह दिखायी नहीं देता। किन्तु आत्मा तो न साकार है और न निराकार है, उसका योगीजन कैसे ध्यान करते हैं ? ॥७२२॥ शरीर अत्यन्त गन्दा है किन्तु आत्मा अत्यन्त निमल है। अतः शरीरसे आत्माको जुदा करके सदा उसका ध्यान करना चाहिए ।। ७२३ ।। शरीर और आत्माकी भिन्नतामें उदाहरण जैसे पानीके बीचमें रहकर भी तेल पानीसे जुदा रहता है, वैसे ही इस शरीरमें रहकर भी १. 'नेत्रद्वन्द्वे श्रवणयुगले नासिकाग्रे ललाटे, वक्त्रे नाभी शिरसि हृदये तालुनि भ्रूयुगान्ते । ध्यानस्थानान्यमलमतिभिः कीर्तितान्यत्र देहे, तेष्वेकस्मिन् विगतविषयं चित्तमालम्बनीयम् ॥१३॥'-जानार्णव पृ. ३०६ । 'तन्नाभौ हृदये वक्त्रे ललाटे मस्तके स्थितम् । गुरुप्रसादतो बुद्ध्वा चिन्तनीयं कुशेशयम् ॥३४॥' -अमित श्राव.. १५ परि.। २. गच्छेत् । ३. प्राणायामादिना ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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