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________________ -14] उपासकाम्ययन २२१ पारंगमस्य अपारसंपरा यारण्यविनिर्गमानुपसर्गमार्गमार्गणनिरतविनेयजनशरण्यस्य दुरन्तैकान्तवादमदमधीमलिनपरवादिकरिकण्ठीरवोत्कण्ठकण्ठारवायमाणप्रमाणनेयनिक्षेपानुयोगवाग्व्यतिकरस्य श्रवणग्रहणावगाहनावधारणप्रयोगवाग्मित्वकवित्वगमकशक्तिविस्मापितविनतनरनिलिम्पाम्बरचरचक्रवर्तिसीमन्तमान्तपर्यस्तो सम्रक्सौरभाधिवासितपादपीठोपकण्ठस्य बतविद्यानेवघहदयस्य भगवतो रत्नत्रयपुरःसरस्य उपाध्यायपरमेष्ठिनोऽष्टतयोमिष्टिं करोमीति स्वाहा। अपि च अपास्तैकान्तवादीन्द्रानपारागमपारगान् ।। उपाध्यायानुपासेऽहमुपायाय" श्रुताप्तये ॥४८॥ ॐ विदित वेदितव्यस्य बाह्याभ्यन्तराचरणकरणे त्रयविशुद्धित्रिपथगापगाप्रवाहनिर्मूलितमनोजकुजकुटुम्बाडम्बरस्य अमराम्बरचरनरनितम्बिनीकदम्बनदप्रादुर्भूतमदनमदमकरन्ददुर्दिनविनोदारविन्द न्द्रायमाणोदितोदितव्रतमाता पहसितार्वाचीनचरित्रच्युत विरिश्चविअंगवायोंके रूपमें विस्तीर्ण श्रुतरूपी समुद्रके पारगामी होते हैं, जो अपार संसाररूपी महावनसे निकलनेके लिए उपसर्ग-रहित मार्गकी खोजमें लगे हुए शिष्यजनोंके लिए शरणभूत हैं, दुरन्त एकान्तवादरूपी मदकी कालिमासे मलिन परवादी रूपी हाथियोंके लिए प्रमाण, नय, निक्षेप और अनुयोगसे युक्त जिनका वचनसमह सिंहकी गर्जनाके तुल्य होता है, श्रवण ( सुनना ), ग्रहण, मन्थन, अवधारण (याद रखना), प्रयोग, वाग्मित्व (पाण्डित्यपूर्ण वचन बोलनेकी कला), कवित्व और गमक शक्ति ( समझाने की शक्ति) के द्वारा आश्चर्ययुक्त किये गये विनत (नमस्कार करते हुए) मनुष्यों, देवों और विद्याधरोंके स्वामियोंके केशोंसे नीचे गिरी हुई मालाओंकी सुगन्धसे जिनके चरणोंके आसनका निकट भाग सुवासित है, और जो व्रतविधानमें निर्दोष हृदय हैं, उन रत्नत्रयसे भूषित भगवान् उपाध्याय परमेष्ठीकी आठ द्रव्योंसे पूजा करता हूँ। __ प्रमुख एकान्त वादियोंको हरानेवाले और अपार श्रुत-समुद्रके पारगामी उपाध्याय परमेष्ठीकी मैं पुण्य और श्रुतकी प्राप्तिके लिए उपासना करता हूँ ॥ ४८८ ॥ सांधुपूजा ___ जो कुछ जानने योग्य है उसे जिन्होंने जान लिया है; बाह्य और आभ्यन्तर आचरण पूर्वक मन, वचन, कायकी विशुद्धिरूपी गङ्गानदीके प्रवाहसे जिन्होंने कामदेवरूपी वृक्षके कुटुम्बके आडम्बरको जड़-मूलसे उखाड़ कर फेंक दिया है; देवाङ्गना, विद्याधरी और नारियोंके समूहरूप नदीमें उत्पन्न हुए काममदरूपी पुष्पमधुसे युक्त विनोदरूपी कमलके लिए चन्द्रमाके तुल्य अपने १. संसाराटवी। २. शब्दायमान । ३. वस्तुयाथात्म्यप्रतिपत्तिहेतुः प्रमाणम् । ४. प्रमाणपरिगृहीनार्थंकदेशनिरूपणप्रवणो नयः । ५. शब्दसंकल्पयोग्यतास्वरूपैर्वस्तुव्यवस्थापनहेतुनिक्षेपः। ६. सामान्यविशेषाम्यामशेषपदार्थावगमपक्षः अनुयोगः । ७. अवगाहनम्-विमर्शनम् । ८. प्रयोगः शास्त्रार्थख्यापनम् । ९. अधःपतित । १०. व्रतविधावन-व० । ११. उप समीपे अयः शुभावहो विधिर्यस्य स उपायः पुण्यमित्यर्थः । पुण्यार्थ च । १२. शाततत्त्वस्य । १३. मनोवाक्काय । १४. गंगा। १५. स्त्रीसमूहह्रदोत्पन्न । १६. कमलसंकोचकारक । १७. वातः-समूहः । १८. ब्रह्मा।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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