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________________ १६६ सोमदेव विरचित [कल्प ३१, श्लो० ४२५परागावसरो व्यसनगोचरश्च । तद् ध्वनेयेयमिदमवसेयमद्वितीयाफ्त्यप्रसवाय सचिपाय। तदुदाहरन्ति न चानिषेध भर्तुः किञ्चिदारम्भं कुर्यादन्यत्रात्प्रतीकारेभ्य' इति । (प्रकाशम् ) 'प्राणप्रियैकापत्य अमात्य, ईदृश इव ननु भवादशोऽपि जनो जातजीवितामृतानिषेकाय अचिरत्नं यत्तं कर्तुमर्हति ।' ___अमात्यः-'समस्तमनोरथसमर्थनकथास्मायें भार्ये, तज्जीवितामृतनिषेकाय मज्जीवितोचितविवेकाय च तत्रभवत्येव प्रभवति।' धात्री-'अथ किम् । तथाप्यबलाजनमनोतिरिक्तप्रतिभावता तत्रभवतापि प्रतियतितव्यम् ।' इत्यभिधाय धृतकात्यायिनीप्रतिकर्मा करतलामलकमिवाकलितसकलस्त्रैणधर्मा तैस्तैः परचित्ताकर्षणमन्त्रैर्व त्रैश्चक्षुश्चेतोहादेवास्तुभिश्च अतिचिरायाचरितोपचारा परिप्राप्तप्रणयप्रसरावतारा च एकदा मुदा रहसीमं प्रस्तुतकार्यघटनासमसीमं तां पुष्यकान्तामुद्दिश्य श्लोकमुदाहार्षीत् । 'स्त्रीषु धन्यात्र गङ्गव परभोगोपगापि या। मणिमालेव सोल्लासं ध्रियते मूनि शम्भुना ॥४२५॥ भट्टिनी-(स्वगतम्) इत्वरीजनाचरणहर्म्यनिर्माणाय प्रथमसूत्रपात इवायं वाक्योही साथ मुसीबतमें भी पड़ जाता है। इसलिए यह कार्य केवल एक ही पुत्रवाले मंत्रीसे कह देना चाहिए, कहा भी है कि स्वामीसे निवेदन किये बिना दूतको कोई भी काम नहीं करना चाहिए । हाँ, यदि कोई आपत्ति आ जाये तो उसका प्रतीकार स्वामीसे विना कहे भी किया जा सकता है।' ऐसा मनमें सोचकर धाय मन्त्रीसे बोली-- ___ मंत्री जी! आपका यह प्राणप्रिय इकलौता लड़का है। आप भी पहले ऐसे ही थे। इसलिए पुत्रके जीवनको बचानेके लिए आपको शीघ्र प्रयत्न करना चाहिए।' मंत्री-आर्ये ! मेरे और मेरे पुत्रके जीवनको बचाना आपके ही हाथ है। धाय--सो तो है ही, किन्तु फिर भी आपकी प्रतिभा हम स्त्रियोंकी बुद्धिसे बहुत अधिक है । इसलिए आपको भी प्रयत्न करना चाहिए। इतना कहकर धायने ढलती उम्रकी स्त्रीका वेश धारण किया। वह स्त्रीजनोचित सब बातोंमें बड़ी चतुर थी। उसने दूसरेके चित्तको आकृष्ट करनेवाले वचनोंसे और आँखों तथा मनको प्रसन्न करनेवाली वस्तुओंसे कुछ दिनोंमें ही पद्माको खुश कर लिया। एक दिन प्रेमका जाल फैलाने का अवसर आया देखकर धायने बड़े हर्षके साथ एकान्तमें पद्माको लक्ष्य करके एक श्लोक कहा उसका भाव यह था--'इस लोककी स्त्रियोंमें गङ्गा नदी ही धन्य है, जिसे सब भोगते हैं, फिर भी महादेव बड़े हर्षसे मणियोंकी मालाकी तरह उसे अपने मस्तक पर धारण करते हैं ॥४२५॥ इसे सुनकर पद्माने अपने मनमें विचारा-'इसकी यह भूमिका तो दुराचारिणी स्त्रियोंके १. ब्रूत येय-मु० । कथयामि । २. कार्यम् । ३. आर्याः कथयन्ति । ४. आपत्प्रतीकारः स्वामिनोऽनिवेद्यापि करणीयः, अन्यत्कार्य कथनीयमित्यर्थः । ५. पूर्व त्वमपीदृशोऽभूः इति भावः । ६. पुत्रजीवितमेवाऽमृतं तत्सेचनाय । ७. त्वमेव । ८. समर्था । ९. अर्धवृद्धा । १०. वचनैः । ११. वास्तुभिर्वस्तुभिश्च अ. ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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