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________________ १६४ सोमदेव विरचित [कल्प ३१, श्लो० ४२२अनङ्गानलसंलोढे परस्त्रीरतिचेतसि। सद्यस्का विपदो पत्र परत्र च दुरास्पदाः ॥४२२॥ श्रूयतामत्राब्रह्मफलस्योपाख्यानम्-काशिदेशेषु सुरसुन्दरीसपत्नपौरागनाजनविनोदारविन्दसरस्यां वाणारस्यां संपादितसमस्तारातिसंतानप्रकर्षकर्षणो धर्षणो नाम नृपतिः । अस्यातिचिरप्ररूढप्रणयसहकारमअरी सुमारी नामाप्रमहादेवी । पञ्चतन्त्रादिशास्त्रविस्तृतवचन उग्रसेनो नाम सचिवः । पतिहितैकमनोमुद्रा सुभद्रा नामास्य पत्नी। दुर्विलासरसरङ्गः कडारपिङ्गो नामानयोः सूनुः । अनवद्यविद्योपदेशप्रकाशिताशेषशिष्यः पुष्यो नाम पुरोहितः । सौरूप्यातिशयापहसितपंमा पमा नामास्य धर्मपत्नी। समस्ताभिजातजनवायव्यवहारानुगः स कडारपिङ्गः स्वापतेयतारुण्यमदमन्दमानबलाचापलाद्दुरालपनभण्डेन षिड्गेषण्डेन सह नतभ्रूविभ्रमाभ्यर्थ्यमानभुजङ्गातिथिषु वीथिषु संचरमाणस्तामेकदा प्रासादतलोपसंदामरोलपक्ष्मेक्षणाक्षिप्तपमा पभामवलोक्य । 'एषेन्द्रियगुमसमुल्लसनाम्बुवृष्टिः रेषा मनोमृगविनोदविहारभूमिः । एषा स्मरद्विरदबन्धनवारिवृत्तिः कि खेचरी किममरी किमियं रतिर्वा ॥४२३॥' जिसका कामरूपी अमिसे वेष्टित चित्त पर-नारीसे रति करनेमें आसक्त है उसे इसी जन्ममें तत्काल विपत्तियाँ उठानी पड़ती हैं और परलोकमें भी कठोर विपत्तियोंका सामना करना पड़ता है ॥४२२॥ दुराचारके फलके सम्बन्धमें एक कथा सुनें १६ दुराचारी कडारपिंगकी कथा काशी देशमें वाराणसी नामकी नगरी है। उसमें धर्षण नामका राजा राज्य करता था। सुमञ्जरी नामकी उसकी पटरानी थी, और उग्रसेन नामका मन्त्री था। मन्त्रीकी पत्नीका नाम सुभद्रा था, और पुत्रका नाम कडारपिंग था। वह बड़ा विलासी था। राजपुरोहितका नाम पुष्य था और उसकी पत्नीका नाम पद्मा था। मन्त्रीपुत्र कडारपिंग कुलीन पुरुषोंके न करने योग्य काम करता था। एक दिन वह धन और जवानीके मदसे मस्त होकर अश्लील बात-चीत करते हुए कामीजनोंके साथ उन गलियों में घूमता था, जहाँ स्त्रियोंके विलाससे आमन्त्रित होकर विलासी जन आतिथ्य ग्रहण करते हैं। उसने महलके ऊपर अपने सुन्दर नयनोंसे कमलको तिरस्कृत करनेवाली पद्माको देखा । वह सोचने लगा इन्द्रियरूपी वृक्षकी वृद्धिके लिए जलवृष्टि, मनरूपी मृगके विनोदके लिए क्रीडाभूमि और कामरूपी हाथीको बाँधनेके लिए सांकलके समान यह कौन है ? कोई विद्याधरी है या देवागना है अथवा रति है ? ॥४२३॥ १. तिरस्कृतलक्ष्मी। २. विटसमूहेन । ३. कामिजन । ४. गताम् । ५. अरालं चारु कुटिलं वा। ६. श्रियम् ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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