SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ wwwwww -२६६ ] उपासकाध्ययन कुर्वनवतिमिः सार्धं संसर्ग भोजनादिषु । प्राप्नोति वाच्यतामत्र परत्र च न सत्फलम् ॥२६॥ दृतिप्रायेषु पानीयं स्नेहं च कुतुपादिषु । व्रतस्थो वर्जयेन्नित्यं योषितश्चावतोचिताः ॥२६॥ सेवन करनेवाले पुरुषोंके साथ खान-पान करता है उसकी यहाँ निन्दा होती है और परलोकमें भी उसे अच्छे फलकी प्राप्ति नहीं होती ॥२६८॥ व्रती पुरुषको चमड़ेकी मशकका पानी, चमड़ेके कुप्पोंमें रखा हुआ घी, तेल और मद्य, मांस आदिका सेवन करनेवाली स्त्रियोंको सदाके लिए छोड़ देना चाहिए ॥२६॥ भावार्थ-छोटीसे-छोटी बुराईसे बचनेके लिए बड़ी सावधानी रखनी होती है। फिर आज तो मद्य, मांसका इतना प्रचार बढ़ता जाता है कि उच्च कुलीन पढ़े-लिखे लोग भी उनसे परहेज नहीं रखते। अंग्रेजी सभ्यताके साथ अंग्रेजी खान-पान भी भारतमें बढ़ता जाता है। और अंग्रेजी खान-पानकी जान मद्य और मांस ही हैं। प्रायः जो लोग शाकाहारी होते हैं उनका भोजन भी रेल्वे वगैरहमें मांसाहारियोंके भोजनके साथ ही पकाया जाता है। उसीमें-से मांसको बचाकर शाकाहारियोंको खिला देते हैं। जो लोग पार्टियों वगैरहमें शरीक होते हैं उनमें से कोई-कोई सभ्यताके विरुद्ध समझकर जो कुछ मिल जाता है उसे ही खा आते हैं। इस तरह संगतिके दोषसे बचे-खुचे शाकाहारी भी मांसादिकके स्वादसे नहीं बच पाते और ऐसा करते-करते उनमें से कोई-कोई मांसाहार करने लग जाते हैं । अंग्रेजी दवाइयोंका तो कहना ही क्या है, उनमें भी मद्य वगैरहका सम्मिश्रण रहता है। पौष्टिक औषधियों और तथोक्त विटामिनोंको न जाने किनकिन पशु-पक्षियों और जलचर जीवों तकके अवयवों और तेलोंसे बनाया जाता है। फिर भी सब खुशी-खुशी उनका सेवन करते हैं। ओवल्टीन नामके पौष्टिक खाद्यमें अण्डे डाले जाते हैं फिर भी जैन-घरानों तकमें उसका सेवन छोटे और बड़े करते हैं। यह सब संगति दोषका ही कुफल है। उसीके कारण बुरी चीजोंसे घृणाका भाव घटता जाता है और धीरे-धीरे उनके प्रति लोगोंकी अरुचि टूटती जाती है। इन्हीं बुराइयोंसे बचनेके लिए आचार्योंने ऐसे स्त्री-पुरुषोंके साथ रोटी-बेटी व्यवहारका निषेध किया है जो मद्यादिकका सेवन करते हैं। जैनाचारको बनाये रखने के लिए और अहिंसाधर्मको जीवित रखनेके लिए यह आवश्यक है कि जैनधर्मका पालन करने वाले कमसे-कम अपने खान-पानमें दृढ़ बने रहें । यदि उन्होंने भी देखा-देखी शुरू की और वे भी भोग-विलासके गुलाम बन गये तो दुनियाको फिर अहिंसा-धर्मका सन्देश कौन देगा ? कौन दुनियाको वतायेगा कि शरावका पीना और मांसका खाना मनुष्यको बर्बर बनाता है और बर्वरता के रहते हुए दुनियामें शान्ति नहीं हो सकती। अतः जैसे सफेदपोश बदमाशोंसे बचे रहने ही कल्याण है वैसे ही सभ्य कहे जानेवाले पियक्कड़ों और गोश्तखोरोंके साथ खान-पानका सम्बन्ध न रखनेमें ही सबका हित है। ऐसा करनेसे आप प्रतिगामी, कूढ़मग्ज या दकियानूसी १. 'अपाङ्क्तेयः समं कुर्वन् संसर्ग भोजनादिषु । प्राप्नोति निन्द्यतामत्र परत्र च न सत्फलम् ॥७३॥'-धर्मर०, पृ० ८० उ. । २. चर्मभाण्डेषु। ३. घृततलाधारचर्मभाजनेषु । 'दतिप्रायेषु पात्रेषु तोयं स्नेहं तु नाश्रयेत् ।' -प्रबोधसार पृ० ७४ ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy