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________________ सोमदेव विरचित [ कल्प १५, श्लो० २०६ अत्रान्तरे सहचरानुचरसंचरत्खेचरीचरणालक्तकरक्तरन्ध्रस्य विजयार्धतटी धस्य दयिताविदूरविद्याधरीविनोदविहारपरिमलित कान्तारधरण्यामुत्तरश्रेण्याममरावती पुरीपरमे श्वरः सुमङ्गलाबलावरः प्रकामनिखातारातिकान्ताशयशोकशङ्कुस्त्रिशङ्कुर्नाम नृपतिः समरावसराभिसरत्सपत्नसंतानावसानसारशिलीमुखश्चिराय राज्य सुखमनुभूय जिनागमादवगतसंसारशरीरभोगवैराग्यस्थितिर्यतिर्बुभृषुभू गोचरसंचाराय हेमपुरेश्वराय समस्तमहीशमान्यशासनाय बलवाहनाय सुतां सुदेवीं राज्यं च ज्येष्ठाय पुत्राय भास्करदेवाय प्रदाय सुप्रभसूरिसमीपे संयमी समजनि । ८६ - ततो गतेषु कतिपयेषुचिद्दिवसेषु समुत्साहितात्मीयसहाय समूहेन स्वदोदर्पविद्यावलव्यूहेन दुर्विनीतवरिष्ठेन कनिष्ठेनानुजेन पुरंदरदेवेन विहितराज्यापहारः परिजनेन समं स भास्करदेवस्तत्र बलवाहन पुरे शिविरमधिनिवेश्य मणिमालया महिष्यानुगस्तं सोमदत्तभगवन्तमुपासितुमागतस्तत्पादमूले स्थलकमलमिव तं बालकमवलोक्य 'अहो महदाश्चर्यम्, यतः कथमिदमरत्नाकैरमपि रत्नम्, अजलाशयमपि कुशेशयम्, अनिन्धनमपि तेजःपुञ्जम्, अचण्डकर मप्युग्रत्विषम्, अनिला मातुलमपि कमनीयम् अपि च कथमयं वालपल्लव व पाणिस्पर्शेनापि म्लायलावण्यः, कठोरोष्मणि ग्रावणि वज्रघटित इव रिरंसमानमानसः, मातुरुत्सङ्गगत इव सुखेन समास्ते' इति कृतमतिः प्रियतमे 'कामं स्तनंधयधृतमनोरथायास्तवायं भगवत्प्रसादसंपन्नः सर्वलक्षणोपपन्नो वज्रकुमारो नामास्मदीयवंशविशालताविधा इसी बीचमें एक घटना घटी। विजयार्ध पर्वतकी उत्तरश्रेणिमें अमरावती नगरीका राजा त्रिशङ्क चिरकाल तक राज्यसुखको भोगकर संसार से विरक्त हो गया । मुनि होनेकी इच्छा से उसने अपनी कन्या तो हेमपुरके स्वामी भूमिगोचरी वलवाहन राजाको दे दी और राज्य ज्येष्ठ पुत्र भास्कर cast दे दिया । फिर सुप्रभ सूरिके निकट जिनदीक्षा धारण कर ली । कुछ दिन बीतनेपर उसके छोटे पुत्र पुरन्दरने आत्मीय जनोंके द्वारा उत्साहित किये जानेपर अपनी भुजाओंके और सैन्यबलके घमण्डमें आकर अपने बड़े भाई भास्करदेवका राज्य छीन लिया । तब भास्कर देवने अपने परिजनों के साथ आकर बलवाहनपुरमें अपना लश्कर डाला और स्वयं अपनी पटरानी मणिमाला के साथ सोमदत्त मुनिकी वन्दना करने के लिए आया । मुनि के चरणोंमें पृथ्वीके कमल के समान उस बालकको देखकर वह बोला- 'अरे ! बड़ा आश्चर्य है । विना रत्नाकर के रत्न, विना जलाशयके कमल, विना ईंधनके तेजका पुंज, विना सूर्यके उग्रकान्तिकारक और विना चन्द्रमाके मनोहर यह बालक यहाँ कहाँ से आया ? नवपल्लव के समान इसका लावण्य हाथके स्पर्शसे भी म्लान होने वाला है । किन्तु इस अत्यन्त गर्म पहाड़पर वज्र से बने हुए के समान क्रीड़ा करता हुआ सुखसे ऐसा लेटा है मानो माता की गोद में ही है । 'प्रियतमे ! तुम्हें पुत्रकी वांछा थी । भगवान् के प्रसादसे तुम्हें यह सर्व लक्षणोंसे पूर्ण पुत्र प्राप्त हुआ है । इसका नाम वज्रकुमार रखते हैं । यह हमारे वंशको समुन्नत करेगा ।' ऐसा कह १. - नुगतः आ० । २. समुद्रं विना । ३ इन्धनं विनाऽग्नि । ४. न इलामातुलम् अनिलामातुलम् नचन्द्रम् |
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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