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________________ ८४ सोमदेव विरचित [कल्प १५, श्लो० २०६श्रूयतामत्रोपाख्यानम्-पञ्चालदेशेषु श्रीमत्पार्श्वनाथपरमेश्वरयशःप्रकाशनामंत्रे अहिच्छत्रे चन्द्राननागनारतिकुसुमचापस्य द्विषतपस्य भूपतेरुदितोदितकुलशीलः षडङ्गे वेदे दैवे निमित्ते दण्डनीत्यां चाभिविनीतमतिरापदां दैवीनां मानुषीणां च प्रतिकर्ता यज्ञदत्ताभट्टिनीभर्ता सोमदत्तो नाम पुरोहितोऽभूत् । एकदा तु सा किल यज्ञदत्तान्तर्वत्नी सती माकन्दमञ्जरीकर्णपूरेषु तत्परिणतफलाहारेषु च समासादितदोहला व्यतिक्रान्तरसालवल्लरीफलकालतया कामितमनवाप्नुवती शिफासु व्यथमाना "प्रतानिनोव 'तनुतानवमुपेयुषी तेन पुरोहितेन शातिजनेन च प्रबन्धेन पृष्टा हृदयेष्टमभाषिष्ट। भट्टस्तनिशम्य 'कथमेतन्मनोरथमयथार्थपथमस्मन्मनोमर्थ "मव्यर्थप्रार्थनं करिष्यामि' इत्याकुलमनः परिच्छदच्छात्रतन्त्रानुपदः सात"पत्रपदत्राणस्तद्वेषणधिषणापरायणः सन्नितस्ततो व्रजन् जलवाहिनीनामनदीतटनिकटनिविष्टप्रतनने महति कालिदासकानने परमतपश्चरणाचरणशुचिशरीरेण निःशेषश्रुतश्रवणप्रसृतट्रैक्ट पुस्तकें वगैरह प्रकाशित करके वितरण करते रहना चाहिए । तथा साधु त्यागियोंको गुणवान् और विद्वान् बनानेका भी प्रयत्न करते रहना चाहिए । यदि साधु और त्यागीगण विद्वान् हों तो उनसे जैनधर्मकी प्रभावनाको बहुत साहाय्य मिल सकता है। इसके सिवा पूजा-प्रतिष्ठा कराकर भी जनतामें जैनधर्मका प्रचार कराते रहना चाहिए । आजकल कुछ भाई इसे व्यर्थ व्यय समझते हैं क्योंकि एक तो आज नये मन्दिरोंकी उतनी आवश्यकता नहीं है जितनी जीर्णोद्धारकी आवश्यकता है । दूसरे इस तरहके कार्योंमें धर्म-प्रेमकी भावना कम रहती है और नामकी भावना व पदकी इच्छा ज्यादा रहती है । अतः इन बुराइयोंको दूर करके आवश्यक स्थानों में महोत्सवोंका आयोजन करते रहना चाहिए और उनमें उपदेश सभाओंका सुन्दर आयोजन रहना चाहिए। ऐसा करनेसे महोत्सवोंका आयोजन विशेष लाभदायक सिद्ध होगा और उनसे जैनधर्मकी भी विशेष प्रभावना हो सकेगी। ७. प्रभावना अंगमें प्रसिद्ध वज्रकुमार मुनिकी कथा अब इस विषयमें कथा कहते हैं, उसे सुनें पञ्चाल देशमें श्रीमान् भगवान् पार्श्वनाथके यशसे प्रकाशित अहिछत्र नामका नगर है। उसमें द्विषंतप राजा राज्य करता था। उसकी पत्नीका नाम चन्द्रानना था। राजा द्विपंतपके सोमदेव नामका पुरोहित था । वह बड़ा कुलीन और शीलवान् था । षडङ्ग वेद, ज्योतिष शास्त्र, निमित्त शास्त्र और दण्डनीतिका पण्डित था तथा दैवी और मानवी विपत्तियोंका प्रतिकार करनेमें चतुर था। एकबार उसकी पत्नी यज्ञदत्ता गर्भवती हुई। उसे आमके बौरको कानोंमें पहिरनेका तथा आमके फलोंको खानेका दोहला हुआ। किन्तु आमका मौसम बीत चुका था इस लिये दोहला पूरा न होनेसे वह बहुत दुबली हो गई। पुरोहित तथा कुटुम्बीजनोंके पूछनेपर उसने अपने मनकी बात उनसे कही। सुनकर पुरोहितका मन बड़ा व्याकुल हुआ। वह सोचने लगा कि हमारे मनको पीड़ा देने वाले इसके असामयिक मनोरथको कैसे पूर्ण करूं । उसने जूते पहने, छाता हाथमें लिया तथा शिष्योंको साथ लेकर आमकी खोजमें निकल पड़ा। इधर-उधर घूमते १. पात्रे । २. विशारदः । ३. गर्भणी । ४-५. आम्रमजरी। ६. जटा । ७. लता। ८. कायकृशत्वं प्राप्ता । ९. अस्माकं मनो मथ्नातीति अस्मन्मनोमथं दुःखदम् । १०. सफल । ११. छत्रोपानत्सहितः ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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