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________________ सोमदेव विरचित [श्लो०५६उच्चावचप्रसूतीनां सत्त्वानां सदृशाकृतिः। य श्रादर्श इवाभाति स एव जगतां पतिः॥५६॥ यस्यात्मनि श्रुते तत्त्वे चारित्रे मुक्तिकारणे । एकवाक्यतया वृत्तिराप्तः सोऽनुमतः सताम् ॥५७॥ अत्यतेप्यागमात्पुंसि विशिष्टत्वं प्रतीयते । उद्यानमध्यवृत्तीनां ध्वनेरिव नगौकसौम् ॥५८॥ स्वगुणैः श्लाघ्यतां ग्राति स्वदोषैर्दूष्यतां जनः । रोषतोषौ वृथा तत्र कलधौायसोरिव ॥५॥ द्रुहिणोधोक्षजेशानशाक्यसूरपुरःसराः । यदि रागाद्यधिष्ठानं कथं तत्राप्तता भवेत् ॥६॥ रागादिदोषसंभूतिज्ञेयामीषु तदार्गमात् । असतः परदोषस्य गृहीतौ पातकं महत् ॥६१॥ अजस्तिलोत्तमाचित्तः श्रीरतः श्रीपतिः स्मृतः । अर्धनारीश्वरः शंभुस्तथाप्येषां किलाप्तता ॥६॥ वसुदेवः पिता यस्य सवित्री देवकी हरेः।। स्वयं च राजधर्मस्थश्चित्रं देवस्तथापि सः ॥६३॥ विविध प्रकारके प्राणियोंको शकल-सूरत समान होती है। किन्तु उनमें से जिसका आत्मा दर्पणके समान स्वच्छ हो वही जगत्का स्वामी है ॥५६॥ जिसकी आत्मामें, श्रुतिमें, तत्त्वमें और मुक्तिके कारणभूत चारित्रमें एकवाक्यता पाई जाती है अर्थात् जो जैसा कहता है वैसा ही स्वयं आचरण करता है और वैसी ही तत्त्वब्यवस्था भी उपलब्ध होती है , उसे सज्जन पुरुष आप्त मानते हैं ॥५७॥ .. . [इस पर यह प्रश्न किया जा सकता है कि जिन पुरुषोंको प्राप्त माना जाता है वे तो गुजर चुके । हम कैसे जानें कि वे प्राप्त थे ? इसका उत्तर देते हुए ग्रन्थकार कहते हैं अतीन्द्रिय पुरुषकी विशिष्टता उसके द्वारा उपदिष्ट आगमसे जानी जाती है। जैसे , बगीचेमें रहने वाले पक्षियोंकी आवाज से उनकी विशिष्टताका भान होता है। अर्थात् पक्षियोंको विना देखे भी जैसे उनकी आवाजसे उनकी पहचान हो जाती है, वैसे ही आप्त पुरुषोंको बिना देखे भी उनके शास्त्रोंसे उनकी आप्तताका पता चल जाता है ॥५८॥ ___चाँदी और लोहकी तरह मनुष्य अपने ही गुणोंसे प्रशंसा पाता है और अपने ही दोषोंसे बदनामी उठाता है । इसमें रोष और तोष करना अर्थात् अपने आप्तको प्रशंसा सुनकर हर्षित होना और निन्दा सुनकर क्रुद्ध होना व्यर्थ है ॥५॥ .ब्रह्मा, विष्णु, महेश, बुद्ध और सूर्य वगैरह देवता यदि रागादिक दोषोंसे युक्त हैं तो वे आप्त कैसे हो सकते हैं ? और वे रागादि दोषोंसे युक्त हैं यह बात उनके शास्त्रोंसे ही जाननी चाहिए,क्योंकि जिसमें जो दोष नहीं है उसमें उस दोषको माननेमें बड़ा पाप है ॥६०-६१॥ देखो, ब्रह्मा तिलोत्तमामें आसक्त हैं, विष्णु लक्ष्मीमें लीन हैं और महेश तो अर्धनारीश्वर प्रसिद्ध १. 'उच्चावचं नैकभेदम्' इत्यमरः । २. परोक्षेऽपि नरे। ३. यथा पक्षिणां परोक्षेऽपि शब्दात विशिष्टत्वं ज्ञायते । ४. सुवर्णलोहयोरिव । ५. ब्रह्म-हरि-हर-बुद्ध-सूर्यादयः । ६. तस्य तस्य शास्त्रात् ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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