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________________ -१६] उपासकाध्ययन दृष्टान्ताः सन्त्य संख्येया मतिस्तद्वशवर्तिनी । किं न कुर्युर्महीं धूर्ता विवेकरहितामिमाम् ॥१४॥ दुराग्रहग्रहग्रस्ते विद्वान्पुंसि करोतु किम् । कृष्णपाषाणखण्डेषु मार्दवाय न तोयदः ॥ १५ ॥ ईर्ते युक्तिं यदेवात्र तदेव परमार्थसत् । यद्भानुदीप्तिवत्तस्याः पक्षपातोऽस्ति न क्वचित् ॥ १६॥ श्रद्धा श्रेयोऽर्थिनां श्रेयः संश्रयाय न केवला । बुभुक्षितवशात्पाको जायेत किमुदम्बरे ॥ १७ ॥ पात्रावेशादिवन्मन्त्रादात्मदोषपरिक्षयः । दृश्येत यदि को नाम कृती क्लिश्येत संयमैः ॥ १८ ॥ दीक्षाक्षणान्तरात्पूर्व ये दोषा भवसंभवाः । पश्चादपि दृश्यन्ते तन सो मुक्तिकारणम् ॥१६॥ ५ संसार में दृष्टान्तों की कमी नहीं है, दृष्टान्तोंको सुनकर लोगोंकी बुद्धि उनके आधीन हो जाती है । ठीक ही है- धूर्त लोग इस विवेक शून्य पृथिवीपर क्या नहीं कर सकते ||१४|| जो पुरुष दुराग्रह रूपी राहुसे ग्रस लिया गया है अर्थात् जो अपनी बुरी हठको पकड़े हुए है उस पुरुषको विद्वान् कैसे समझावें । मेघके बरसने से काले पत्थर के टुकड़ों में कोमलता नहीं आती || १५ || फिर भी इस लोकमें जो वस्तु युक्तिसिद्ध हो वही सत्य है, क्योंकि सूर्यकी किरणोंकी तरह युक्ति भी किसीका पक्षपात नहीं करती ॥१६॥ [ इस प्रकार मनमें विचार कर आचार्य यहाँ से उक्त मतान्तरोंका क्रमशः निराकरण करते हैं - ] १. कल्याण चाहनेवालोंका कल्याण केवल श्रद्धा मात्रसे नहीं हो सकता । क्या भूख लगनेसे ही गूलर पक जाते हैं ? ॥१७॥ उचित व्यक्तिमें आगत भूतावेशकी तरह यदि मन्त्र पाठसे ही आत्मा के दोषों का नाश होता देखा जाता, तो कौन मनुष्य संयम धारण करनेका क्लेश उठाता ॥ १८ ॥ दीक्षा धारण करनेसे पहले जो सांसारिक दोष देखे जाते हैं, दीक्षा धारण करनेके बाद भी वे दोष देखे जाते हैं । अतः केवल दीक्षा भी मुक्तिका कारण नहीं है ॥ १९ ॥ भावार्थ—पहले सैद्धान्त वैशेषिकों का मत बतलाते हुए कहा है कि वे मन्त्र-तन्त्र पूर्वक दीक्षा धारण करने और उनपर श्रद्धा मात्र रखनेसे मोक्ष मानते हैं । उसीकी आलोचना करते हुए आचार्य कहते हैं कि न केवल श्रद्धा से ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है और न मन्त्र-तन्त्र पूर्वक दीक्षा धारण करनेसे ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है। श्रद्धा तो मात्र रुचिको बतलाती है, किन्तु किसी चीजपर श्रद्धा हो जाने मात्रसे ही तो वह प्राप्त नहीं हो जाती । इसी तरह दीक्षा धारण कर लेनें मात्रसे भी काम नहीं चलता, क्योंकि दीक्षा लेनेपर भी यदि सांसारिक दोषोंके विनाशका प्रयत्न न किया जाये तो वे दोष जैसे दीक्षा लेनेसे पहले देखे जाते हैं वैसे ही दीक्षा धारण करनेके बाद में भी देखे जाते हैं । यदि केवल श्रद्धा या दीक्षा से ही काम चल सकता होता तो संयम धारण करनेके कष्टों को उठानेकी जरूरत ही नहीं रहती । अतः ये मोक्षके कारण नहीं माने सकते। १. दीक्षा ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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