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________________ सोमदेव विरचित [श्लो०७सम्यक्त्वज्ञानचारित्रविपर्ययपरं मनः । मिथ्यात्वं नृषु भाषन्ते सूरयः सर्ववेदिनः ॥७॥ . अत्र दुरागमवासनाविलासिनीवासितचेतसां प्रवर्तितप्राकृतलोकानोकहोन्मूलनसमयस्रोतसां सदाचाराचरणचातुरीविदूरवर्तिनां परवादिनां मुक्तरुपाये कोये च बहुवृत्तयः खलु प्रवृत्तयः। तथाहि-सकलनिष्कलाप्तप्राप्तमन्त्रतन्त्रापेक्षदीक्षालक्षणाच्छद्धामात्रानुसरणान्मोक्षः इति सैद्धान्तवैशेषिकाः, द्रव्यगुणकर्मसामान्यसमवायान्त्यविशेषाभावाभिधानानां पदार्थानां साधर्म्यवैधावबोधतन्त्राक्षानमात्रात्' इति तार्किकवैशेषिकाः, 'त्रिकालभस्मोद्धूलनेज्यागडुकप्रदानाप्रदक्षिणोकारणात्मविडम्बनादिक्रियाकाण्डमात्राधिष्ठानादनुष्ठानात्' इति पाशुपताः, 'सर्वेषु पेयापेयभक्ष्याभक्ष्यादिषु निःशङ्कचित्ताद् वृत्तात्' इति कुलाचार्यकाः। तथा च त्रिकमतोक्तिः-'मदिरामोदमेदुरवदनस्तरसरसप्रसन्नहृदयः सव्यपार्श्वविनिवेशितशक्ति शक्तिमुद्रासनधरः स्वयमुमामहेश्वरायमाणः कृष्णया शर्वाणीश्वरमाराधयेदिति । प्रकृतिपुरुषयोविवेकमतेः ख्यातेः' इति सांख्याः, 'नैरात्म्यादिनिवेदितसंभावनातो भावनातः' इति दशबलकर्मोका बन्ध होता है उन कामोंके न करनेको चारित्रमें चतुर आचार्य सम्यकचारित्र कहते हैं ॥६॥ तथा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्रके विषयमें विपरीत मानसिक प्रवृत्तिको सर्वविद् आचार्योने मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र कहा है ॥७॥ मुक्तिके विषयमें मतान्तर ____ अन्य मतवाले मुक्तिका स्वरूप तथा उपाय अलग-अलग बतलाते हैं। १. सैद्धान्तिक वैशेषिकोंका कहना है कि सशरीर वा अशरीर परम शिवके द्वारा प्राप्त हुए मन्त्र-तन्त्र पूर्वक दीक्षा धारण करना और उनपर श्रद्धा मात्र रखना मोक्षका कारण है। २. तार्किक वैशेषिकोंका कहना है कि द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, समवाय, विशेष और अभाव इन सात पदार्थोके साधर्म्य और वैधर्म्य मूलक ज्ञान मात्रसे मोक्ष होता है । ३. पाशुपतोंका कहना है कि तीनों समय प्रातः दोपहर और शामको भस्म लगाने, शिवलिंगकी पूजा करने, उसके सामने जलपात्र स्थापित करने, प्रदक्षिणा करने और आत्मदमन आदि क्रियाकाण्डमात्रके अनुष्ठानसे मोक्ष होता है। ४. कुलाचार्यकोंका कहना है कि निःशङ्क चित्तसे समस्त पीने योग्य, न पीने योग्य, खाने योग्य, न खाने योग्य पदार्थोंमें प्रवृत्ति करनेसे मोक्ष होता है। त्रिकमतमें लिखा है कि शराबकी सुगन्धसे मुखको सुवासित करके, मांसके स्वादसे हृदयको प्रसन्न करके और दक्षिण पार्श्वमें स्त्री शक्तिको स्थापित करके योनि-मुद्रा आसनका धारक स्वयं ही शिव और पार्वती बनकर मदिराके द्वारा उमा और महेश्वरकी आराधना करे । ५. सांख्योंका कहना है कि प्रकृति और पुरुषके मेदज्ञानसे मोक्ष होता है। १. अत्र 'त्रिषु' इति पाठः प्रतिभाति । यथा- वेदने दर्शने वृत्ते विपर्ययपरं मनः । मिथ्यात्वं त्रिषु भाषते सूरयः सर्वदेहिनः ॥२१॥-प्रबोध० । २. स्वरूपे । ३. 'द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायानां पदार्थानां साधर्म्यवैधाभ्यां तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसम्' ।-वैशे० द०१-४। ४. -लवाद्योगपट्टकप्रदाना-आ० । ५. स्त्री। ६. योनिमुद्रा । ७. मदिरया । ८. सभाव-भ० । संभावमातो इति ज० । ९. बौद्धाः ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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